प्रफुल्ल पटेल के फर्जी व्हाट्सएप अकाउंट से कतर के शाही परिवार से पैसे मांगे गए छत्तीसगढ़ सरकार का ऐलान, पुलिस भर्ती में अग्निवीरों को मिलेगा आरक्षण NTA ने जारी किया NEET-UG का फाइनल रिजल्ट महाराष्ट्र में BJP को अकेले सभी सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए: नारायण राणे लोकसभा 29 जुलाई सुबह 11 बजे तक के लिए स्थगित केंद्रीय मंत्री और मिर्जापुर से सांसद अनुप्रिया पटेल ने PM मोदी से की मुलाकात दिल्ली शराब नीति घोटाला: कोर्ट ने मनीष सिसोदिया और के कविता की न्यायिक हिरासत बढ़ाई कर्नाटक: रामनगर जिले का नाम बदलकर बेंगलुरु दक्षिण करने को मिली सरकार की मंजूरी आज है विक्रम संवत् 2081 के श्रावण माह के कृष्णपक्ष की सप्तमी तिथि रात 09:18 बजे तक यानी शनिवार, 27 जुलाई 2024
‘देश में बोलने की आजादी, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि...’, सनातन विवाद पर मद्रास हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी

अदालत

‘देश में बोलने की आजादी, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि...’, सनातन विवाद पर मद्रास हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी

अदालत//Tamil Nadu/Chennai :

न्यायमूर्ति शेषशायी ने कहा कि, बोलने की आजादी एक मौलिक अधिकार है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि नफरत भरे भाषण दिए जाएं जस्टिस एन. शेषशायी ने कहा कि ऐसा लगता है कि एक विचार ने जोर पकड़ रहा है कि सनातन धर्म पूरी तरह से जातिवाद और अस्पृश्यता को बढ़ावा देने के बारे में है, एक ऐसी धारणा जिसे उन्होंने दृढ़ता से खारिज कर दिया।

सनातन धर्म पर चल रही बहस के बीच मद्रास हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि सनातन धर्म शाश्वत कर्तव्यों का एक समूह है, जिसमें राष्ट्र, राजा, अपने माता-पिता और गुरुओं के प्रति कर्तव्य और गरीबों की देखभाल करना शामिल है। मामले की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति एन. शेषशायी ने सनातन धर्म को लेकर हो रही जोरदार बहस और चारों तरफ मचे शोर-शराबे पर चिंता व्यक्त की।
उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि एक विचार जोर पकड़ रहा है कि सनातन धर्म पूरी तरह से जातिवाद और अस्पृश्यता को बढ़ावा देने के बारे में है, एक ऐसी धारणा जिसे उन्होंने दृढ़ता से खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति शेषशायी ने कहा, “समान नागरिक अधिकार वाले देश में अस्पृश्यता बर्दाश्त नहीं की जा सकती। भले ही इसे ‘सनातन धर्म’ के सिद्धांतों के भीतर कहीं न कहीं अनुमति के रूप में देखा जाता है, फिर भी इसके लिए कोई जगह नहीं हो सकती है, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 17 में घोषित किया गया है कि अस्पृश्यता को समाप्त कर दिया गया है।”
बोलने की आजादी मौलिक अधिकार, लेकिन...
न्यायमूर्ति ने आगे इस बात पर जोर दिया कि बोलने की आजादी एक मौलिक अधिकार है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि नफरत भरे भाषण दिए जाएं, खासकर जब यह किसी धर्म से जुड़ा हो। उन्होंनें यह सुनिश्चित करने की जरूरत पर बल दिया कि इस तरह के भाषण से किसी को चोट नहीं पहुंचे। उन्होंने कहा, “हर धर्म आस्था पर टिका होता है और आस्था अपनी प्रकृति में तर्कहीनता को समायोजित करती है। इसलिए, जब धर्म से जुड़े मामलों में बोलने की आजादी का प्रयोग किया जाता है, तो किसी के लिए यह सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है कि इससे किसी को भी चोट नहीं पहुंचे। दूसरे शब्दों में, बोलने की आजादी का मतलब घृणास्पद भाषण नहीं हो सकता है।”
उदयनिधि स्टालिन की टिप्पणी से उपजा विवाद
अदालत की यह टिप्पणी तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन द्वारा सनातन धर्म के खिलाफ की गई हालिया टिप्पणियों को लेकर आई है। इस बयान के बाद मंत्री को भारी विरोध का सामना करना पड़ा , उन्होंने सनातन धर्म की तुलना “डेंगू और मलेरिया” जैसी बीमारियों से करके राजनीतिक हलचल मचा दी है।

You can share this post!

author

Jyoti Bala

By News Thikhana

Senior Sub Editor

Comments

Leave Comments