राजनीति//Bihar/Patna :
बिहार में जारी राजनीतिक उठापठक में नीतीश कुमार ने एनडीए का साथ छोड़ दिया है। अब उन्होंने दोबारा आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बनाने का ऐलान कर दिया है। यह वही आरजेडी है, जिससे पिंड छुड़ाकर 2017 में नीतीश कुमार ने बीजेपी का दामन थामा था। उसके पहले 2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने ही बिहारी डीएनए को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरा था। नीतीश ऐसे खिलाड़ी हैं, जिन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में भाकपा (माले) से लेकर बीजेपी के साथ काम किया है। सत्ता की खोज में उन्होंने आनंद मोहन सिंह की बिहार पीपुल्स पार्टी के साथ भी गठबंधन किया। नीतीश कुमार के लिए पलटूराम का विशेषण सबसे पहले लालू यादव ने इस्तेमाल किया। अब भाजपा ने भी नीतीश पर पलटू होने का आरोप लगाया है। ऐसे में जानिए कि नीतीश ने अपने सियासी सफर में कैसे बीजेपी और आरजेडी के साथ सत्ता के लिए दोस्ती से लेकर दुश्मनी निभाई।
चार बार के मुख्यमंत्री
हैरानी की बात यह है कि जो व्यक्ति लगातार चौथी बार मुख्यमंत्री है और जिनके पीएम इन वेटिंग की चर्चा हो रही है, उन्होंने कभी भी अपने गृह राज्य में अकेले दम पर कोई चुनाव नहीं जीता है। नीतीश को शुरू से ही एक बूस्टर डोज के तौर पर हमेशा एक सहयोगी की जरूरत रही।
बिहार से अराजकता मिटाकर बने हीरो
जब नीतीश को बिहार की सत्ता मिली थी, तब इस प्रदेश को काफी हेय दृष्टि से देखा जाता था। बिहार अपने आप में अपराध से ग्रस्त, पिछड़ा और बीमारू राज्य का प्रतिमान था। लेकिन, जब नीतीश सत्ता में आए तो उन्होंने प्रशासनिक सुधारों की झड़ी लगा दी। गड्ढों वाली सडक़ों की जगह चमचमाती डामर की रोड ने ले ली। अपराधियों पर नकेल कसने के लिए स्पेशल फोर्स का गठन किया गया। रात में पुलिस की गश्त को बढ़ाया गया।
नीतीश कुमार मोदी के दोस्त या दुश्मन?
नरेंद्र मोदी को लेकर नीतीश कुमार के विचार समय के साथ बदलते रहे हैं। 2013 में जब नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया, तब नीतीश कुमार ने इसका विरोध किया। हालांकि, वे 2017 में फिर से भाजपा के साथ आ गए। हालांकि, वो बीजेपी के साथ पांच साल भी नहीं टिक पाए। नीतीश फिर से उसी आरजेडी के साथ हैं जिनके अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव नीतीश को पलटू राम का तमगा दे चुके हैं।
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