यात्री सुविधा के लिए गुजरात से राजस्थान होते हुए उत्तर-प्रदेश और बिहार के लिए चलेंगी स्पेशल रेलगाड़ियां पहली बार मतदान करने वालोे युवाओं के लिए एयर इंडिया एक्सप्रेस ने दिया किराये में बड़ी छूट का ऑफर टाटा कंपनी ने देश में लांच किया देश का पहला इलेक्ट्रिक ट्रक..! राजस्थानः कुछ देर के लिए होगी तापमान में कमी..मिलेगी तेज गर्मी से निजात, हो सकती है मेघगर्ज के साथ हल्की बरसात
पड़ोस में ‘प्रचंड’ राज...भारत के लिए गुड न्यूज या बैड न्यूज ?

राजनीति

पड़ोस में ‘प्रचंड’ राज...भारत के लिए गुड न्यूज या बैड न्यूज ?

राजनीति///Kathmandu :

नेपाल में हुए सियासी नाटक के बाद माओवादी नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड को राष्ट्रपति ने नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया है। यह तीसरा मौका है, जब प्रचंड को नेपाल की सियासत की कमान मिली है। पिछले दो कार्यकाल में उनका भारत से रिश्ता थोड़ा खट्टा-थोड़ा मीठा रहा है।

माओवादी नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड नेपाल के नए प्रधानमंत्री होंगे। उन्होंने पूर्व पीएम केपी शर्मा ओली की पार्टी से गठबंधन किया है, जिसमें दोनों पार्टियों के बीच रोटेशन पॉलिसी के आधार पर प्रधानमंत्री बनने पर सहमति बनी है। बातचीत के बाद पहले प्रचंड को प्रधानमंत्री बनाया गया है. इसके बाद केपी शर्मा ओली नेपाल के प्रधानमंत्री बनेंगे।
नेपाल के नए प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड इससे पहले भी दो बार नेपाल की सियासी कमान संभाल चुके हैं। उस दौरान उनका चीन से प्रेम किसी से नहीं छुपा था। इसके अलावा पिछले कार्यकाल के दौरान प्रचंड ने भारत को लेकर कई ऐसे बयान भी दिए, जो चुभने वाले थे। जब साल 2009 में प्रचंड के हाथों से सत्ता चली गई थी तो उसके पीछे भी उन्होंने भारत का हाथ बताया था।
दरअसल, नेपाल के प्रधानमंत्री प्रचंड के भारत के साथ लंबे समय से संबंध रहे हैं। एक दौर साल 1996 से लेकर 2006 तक वो भी था, जब नेपाल में सरकार और माओवादियों के बीच गृह युद्ध छिड़ा हुआ था और ऐसे समय में प्रचंड समेत कई माओवादी नेता भारत में रहे थे।
नई दिल्ली में समझौता, प्रचंड ने पाई सत्ता
नवंबर साल 2006 में नई दिल्ली में माओवादियों की सात पार्टियों ने 12 सूत्री समझौते पर हस्ताक्षर किए। समझौता होने के बाद नेपाल में 12 सूत्री समझौते के आधार पर ही आम चुनाव का ऐलान किया गया। इस चुनाव में माओवादी नेताओं को जनता से भरपूर समर्थन मिला, जिसके बाद प्रचंड ने पहली बार नेपाल की सत्ता की कमान संभाल ली। साल 2008 से 2009 तक प्रचंड नेपाल के प्रधानमंत्री रहे। प्रचंड को मिली पहली सत्ता के पीछे भारत का अहम योगदान रहा, उसके बावजूद अपने पहले कार्यकाल में प्रचंड ने कुछ ऐसी चीजें कीं, जो भारत के गले से नीचे नहीं उतरीं।
पीएम बनते ही पहुंचे थे चीन
दरअसल, नेपाल और भारत के बीच रोटी-बेटी का रिश्ता कहा जाता है। भारत के पांच राज्यों से नेपाल की सीमा जुड़ती है। प्रचंड के सत्ता संभालने से पहले तक नेपाल में जब भी कोई प्रधानमंत्री बनता था तो पहला आधिकारिक दौरा हमेशा भारत का करता था। लेकिन, प्रचंड ने यह परंपरा बदल दी और भारत की जगह चीन दौरे पर जाकर सबको चैंका दिया। यही नहीं, प्रचंड ने इसके बाद भारत को लेकर कई ऐसे बयान दिए, जिससे दोनों देशों की सरकारों के बीच खटास पैदा होने लगी। प्रचंड ने इतना तक कह दिया कि अब तक भारत और नेपाल के बीच जो भी समझौते या संधियां हुई हैं, उन्हें खत्म कर देना चाहिए या बदल देना चाहिए। बात और तब बिगड़ गई, जब प्रचंड सरकार ने तत्कालीन नेपाल आर्मी चीफ रुकमंगड़ कटवाल को पद से हटा दिया, जबकि भारत इस फैसले से पूरी तरह नाखुश था।
भारत के सामने कभी सिर नहीं झुकाऊंगा
भारत के गतिरोध के बीच प्रचंड को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ गया और उनकी जगह अन्य माओवादी नेता माधव नेपाल ने ले ली। प्रचंड ने अपने हाथों से सत्ता जाने के पीछे भारत को जिम्मेदार ठहराया। भड़के हुए प्रचंड ने उस समय सार्वजनिक तौर पर नेपाल की संप्रभुता का मुद्दा उठाया और कहा कि वे भारत के आगे कभी अपना सिर नहीं झुकाएंगे।
चीन के साथ मजबूत संबंध
भारत से नाराज प्रचंड के संबंध चीन के साथ मजबूत होते रहे। अपने पहले कार्यकाल से हटने के बाद प्रचंड ने चीन के कई निजी दौरे किए और चीनी कंपनियों से नेपाल के इंस्फ्रास्टक्चर और एनर्जी प्रोजेक्ट्स में निवेश करने की बात कही। दूसरी ओर, जब माधव नेपाल संसद में नया संविधान लागू कराने में असमर्थ रहे तो प्रचंड ने एक बार फिर भारत से अपने संबंध ठीक करने शुरू कर दिए। हालांकि, अगले चुनाव में प्रचंड की पार्टी को कम सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। यहां एक बार फिर प्रचंड ने भारत पर ही अपनी हार का ठीकरा फोड़ दिया।
चीन की बिसात के मोहरे बने नेपाली नेता
साल 2015 में नेपाल में जब भूकंप ने तबाही मचाई तो प्रचंड ने चीन से संबंध मजबूत किए। चीन की मदद से ही प्रचंड, केपी शर्मा समेत कई माओवादी नेता एक साथ आ गए। साल 2015 से 16 तक जहां केपी शर्मा ओली नेपाल के प्रधानमंत्री रहे तो साल 2016 से 2017 तक सरकार की कमान प्रचंड के हाथों में आ गई। इन्हीं सालों में नेपाल के कई हिस्सों में भारत का विरोध होने लगा। इसी दौरान राजधानी काठमांडू में एक बार प्रचंड ने विवादित बयान दिया कि नेपाल अब वो नहीं करेगा, जो भारत कहेगा।
साल 2022 में जेपी नड्डा से मुलाकात
साल 2017 में प्रचंड के हाथों से सत्ता नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा के हाथों में आ गई। कई सालों से सत्ता से दूर प्रचंड ने पिछले कुछ समय में भारत के साथ एक बार फिर संबंध सुधारने शुरू किए। जुलाई 2022 में प्रचंड ने भारत दौरा किया, जहां उनकी मुलाकात बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से हुई। नई दिल्ली से लौटते समय प्रचंड ने कहा था कि हमारी कई ऐसे मुद्दों पर बातचीत हुई, जो पिछले काफी समय से अनसुलझे हैं।
अब भारत पर क्या होगा असर?
नेपाल के मीडिया की मानें तो नेपाल कभी अपने आप का झुकाव किसी ओर ज्यादा नहीं रखता है। वरिष्ठ मीडियाकर्मियों का मानना है कि चाहे चीन हो या भारत, दोनों ही नेपाल के मित्र देश हैं और नेपाल के लोगों के भारतीय लोगों के साथ काफी अच्छे संबंध हैं। ऐसे में नेपाल की किसी भी सरकार के होने का कुछ फर्क भारत और नेपाल के रिश्तों पर नहीं पड़ता है। जहां तक देश का संबंध है तो कोई भी देश अपने पड़ोसी से अच्छा व्यवहार और संबंध ही चाहता है, इसलिए नेपाल में कोई भी सरकार रहे, भारत के साथ संबंध ठीक रहेंगे।

You can share this post!

author

Jyoti Bala

By News Thikhana

Senior Sub Editor

Comments

Leave Comments