मनोरंजन जगत/सिनेमा/Maharashtra/Mumbai :
‘आर्टिकल 370’ सरकार के एक ऐतिहासिक फैसले, उस फैसले को ग्राउंड पर लागू करने वाले लोगों, फैसले के पीछे की प्लानिंग-प्लॉटिंग और बिना किसी को कानोंकान खबर हुए उसके कामयाब होने को सेलिब्रेट करती है।
फिल्म: आर्टिकल 370
कलाकार: यामी गौतम, प्रियामणि, अरुण गोविल, किरण कर्मारकर, वैभव तत्ववादी
निर्देशक: आदित्य सुहास जांभले
पिछले कुछ समय में इस तरह की इतनी फिल्में आ चुकी हैं कि बॉलीवुड खुद अपना एक श्राजनीति शास्त्र विभागश् बना सकता है। अगर ‘पॉलिटिकल फैसले पर बेस्ड फिल्म’ वाली बात को थोड़ा साइड रखकर देखा जाए तो ‘आर्टिकल 370’ आपको बांधकर रखने में तो कामयाब होने वाली फिल्म है। प्रोड्यूसर आदित्य धर की ये फिल्म बिल्कुल उसी जोन में ऑपरेट करती है, जिसमें उनकी खुद की डायरेक्ट की हुई ‘उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक’ थी। ‘आर्टिकल 370’ सरकार के एक ऐतिहासिक फैसले, उस फैसले को ग्राउंड पर लागू करने वाले लोगों, फैसले के पीछे की प्लानिंग-प्लॉटिंग और बिना किसी को कानोंकान खबर हुए उसके कामयाब होने को सेलिब्रेट करती है। जैसे ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ खबरों में बहुत पॉपुलर चीज थी, मगर कैसे हुई, किस तरह हुई ये किसी को नहीं पता था। विक्की कौशल की ‘उरी’ आई और लोगों के इमेजिनेशन को वो तस्वीरें मिल गईं, जो खबरों में छपे शब्दों को रियलिटी की तरह दिखा रही थीं। हालांकि थी वो एक डायरेक्टर की इमेजिनेशन ही। इसी तरह ‘आर्टिकल 370’ भी ऑडियंस को एक और ‘ऐतिहासिक’ घटना के विजुअल्स देने का काम करती है।
बुरहान वानी की कहानी से शुरूआत
यामी गौतम स्टारर इस फिल्म को डायरेक्टर आदित्य सुहास जांभले ने चैप्टर वाले स्टाइल में ट्रीट किया है। ये चैप्टर कश्मीर के बुरहान वानी एपिसोड से शुरू होते हैं और पुलवामा हमले से होते हुए आगे बढ़ते हैं। आखिरकार ये वहां पहुंचते हैं, जहां भारत सरकार का एक फैसला कश्मीर की तकदीर बदलने के लिए तैयार है। ‘आर्टिकल 370’ शुरू होती है इंटेलिजेंस ऑफिसर जूनी हकसार (यामी गौतम) के एक मिशन से, जिसमें उनके निशाने पर बुरहान वानी है। जूनी का ऑपरेशन कश्मीर में बवाल खड़ा कर देता है, जिसके बाद उसे दिल्ली बुला लिया जाता है। इधर दिल्ली में पीएमओ की हाई रैंक ऑफिशियल राजेश्वरी स्वामीनाथन कश्मीर के हालात को लेकर एक्टिव हैं। वो सीधा प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के ‘कश्मीर विजन’ को रियलिटी में लाने पर काम कर रही हैं। फिल्म में प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के नाम नहीं लिए गए हैं, मगर दोनों किरदारों को देखकर ही आप समझ जाते हैं कि ये कौन हैं।
प्रियामणी की लाजवाब अदाकारी
राजेश्वरी अपने प्लान को आगे बढ़ाने के लिए जूनी को वापस कश्मीर भेजती हैं। इस बार नई पावर के साथ पहुंची जूनी का मिशन है कश्मीर में एंटी-इंडिया गतिविधियों और लोगों को काबू करना ताकि इधर सरकार अपने फैसले बिना चिंता के ले सके। और फिल्म की एकदम शुरुआत में ही ये साफ हो जाता है कि जूनी इस तरह के काम में किसी भी तरह ढीली नहीं पड़ने वाली। एक तरफ आपको जूनी की नजर से कश्मीर के हालात, वहां की पॉलिटिक्स और ब्यूरोक्रेसी पर कमेंट्री मिलती है। दूसरी तरफ, राजेश्वरी दिल्ली की राजनीति का जायका आप तक पहुंचाती हैं। सेकंड हाफ में प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की एंट्री के बाद फिल्म का माहौल ही बदल जाता है। ऐसा लगता है कि सारा फोकस उनपर पहुंच गया है। लेकिन ये तो होना ही था, आखिर वो किरदार ही ऐसे हैं!
भारत के गृहमंत्री अमित शाह की एक पार्लियामेंट स्पीच को जिस तरह रीक्रिएट किया गया है, वो फिल्म के नैरेटिव में काफी असरदार है। किरण कर्मारकर ने अपने जानदार काम से इस रोल में जान फूंक दी है। इसी तरह अरुण गोविल ने प्रधानमंत्री के किरदार को बेहतरीन संजीदगी के साथ पेश किया है।
क्या प्लस-क्या माइनस
‘आर्टिकल 370’ रियलिटी और फिक्शन के बीच की लकीर पर बड़ी चतुराई से चलती है। पॉलिटिकल समझ और असल घटनाओं को पूरे फैक्ट्स के साथ देखने वाले लोगों को फिल्म में बहुत गलतियां मिल सकती हैं। मगर ये तो अब हम सभी जानते हैं कि इस तरह की फिल्मों में फैक्ट्स वो आखिरी चीज हैं जिन पर फोकस किया जाता है। लेकिन ‘आर्टिकल 370’ की खासियत यही है कि इसका पूरा ड्रामा बड़ी कलाकारी के साथ रचा गया है और थ्रिलिंग तरीके से आगे बढ़ता है।
यामी गौतम का काम दमदार
यामी गौतम का काम इस फिल्म में इतना दमदार है कि ‘आर्टिकल 370’ को उनकी करियर बेस्ट परफॉरमेंस कहा जा सकता है। क्लोज-अप्स में उनकी आंखें चेहरे के एक्सप्रेशन और आवाज बेहतरीन असर करते हैं। राजेश्वरी एक रोल में प्रियामणि भी बहुत दमदार लगती हैं। वैभव तत्ववादी और राज अर्जुन की परफॉरमेंस भी याद रहने वाली है। ‘आर्टिकल 370’ के पूरे नैरेटिव को बैकग्राउंड स्कोर से बहुत हेल्प मिलती है। सिनेमेटोग्राफी, साउंड और प्रोडक्शन के मामले में ये एक टेक्निकली सॉलिड फिल्म है। और बहुत असरदार तरीके से अपने नैरेटिव को आगे बढ़ाती है। इसलिए दर्शक के तौर पर ये समझना महत्वपूर्ण हो जाता है कि आखिरकार पर्दे पर दिखाई जा रही कहानी फिक्शन है, फैक्ट नहीं। खुद मेकर्स भी इस बात को लेकर एक्स्ट्रा सतर्क हैं और शायद इसीलिए उन्होंने फिल्म की शुरुआत में एक बहुत लंबा-चैड़ा डिस्क्लेमर दिया है। इस दौर में पॉलिटिकल लकीर पर बनती फिल्मों की एक सिनेमाई याद ये लंबे-लंबे डिस्क्लेमर भी बनने वाले हैं।
संविधान की समझ को बढ़ाएगी
कुल मिलाकर ‘आर्टिकल 370’ रियलिटी के बेहद करीब वाले फिक्शन को फैक्ट्स से थोड़ा दूर ले जाकर एक थ्रिलिंग तरीके से पेश करती है। यामी गौतम और बाकी सारे एक्टर्स की दमदार परफॉरमेंस फिल्म को एंगेजिंग बनाती है। बीच-बीच में संविधान की टेक्निकल चीजों को समझाने की कोशिश, नैरेटिव को थोड़ा सा धीमा करती है, मगर रियलिटी की पोटली में बंधा फिक्शन इससे मजबूत ही होता है। यही वजह है कि 2 घंटे 40 मिनट का लंबा रनटाइम होने के बावजूद ये फिल्म अटेंशन होल्ड करने में कामयाब होती है।
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