बिजनेस//Delhi/New Delhi :
गौशालाएं प्राकृतिक खेती और जैविक खेती को बढ़ावा देने में मदद कर सकती हैं। मवेशियों के खाद से कृषि रसायनों को बदला जा सकता है।
नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (नीति आयोग) ने शुक्रवार को कहा कि खेती के लिए गोबर और गोमूत्र-आधारित फॉर्मेशन इस्तेमाल किया जाना चाहिए। साथ ही, वित्तीय सहायता के जरिए गौशालाओं को मदद दी जानी चाहिए।
नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा है कि साउथ एशियन खेती-बाड़ी की अनूठी ताकत फसलों के साथ पशुधन में समाहित है। पिछले 50 सालों में इनऔर्गेनिक फर्टिलाइजर के इस्तेमाल से गंभीर प्रभाव सामने आए हैं। इससे मिट्टी, खाने की क्वालिटी, पर्यावरण और इंसानों के स्वास्थ्य पर खतरनाक असर पड़ रहा है। रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि ऑर्गेनिक और बायो फर्टिलाइजर के प्रोडक्शन और प्रमोशन के साथ गौशालाओं में सुधार किया जाना चाहिए।
गाय का वेस्टेज सर्कुलर इकोनॉमी का उदाहरण
डॉ. निलम पटेल ने कहा कि मवेशी भारत में पारंपरिक कृषि का एक अहम अंग हैं। गौशालाएं प्राकृतिक खेती और जैविक खेती को बढ़ावा देने में मदद कर सकती हैं। मवेशियों के खाद से कृषि रसायनों को बदला जा सकता है। उन्होंने कहा कि मवेशियों के वेस्टेज का इस्तेमाल सर्कुलर इकोनॉमी का एक उदाहरण है, जिससे इनकम का भी विचार आया।
वेस्ट टू वेल्थ पहल के लिए सुझाव दिए
टीम ने स्थायी खेती को बढ़ावा देने और वेस्ट टू वेल्थ पहल में गौशालाओं की भूमिका के बारे में अपने अनुभव और विचार साझा किए। यह गौशालाओं की वित्तीय और आर्थिक व्यवस्था में सुधार के लिए सुझाव थे।
जैविक और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रही सरकार
हाल में सरकार टिकाऊ खेती जैसे जैविक खेती और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रही है। बायो और आॅर्गेनिक निवेश की आपूर्ति के लिए भी गौशालाएं रिसोर्स सेंटर्स के रूप में काम कर रही हैं, जो प्राकृतिक और टिकाऊ खेती को बढ़ाने में अहम बन सकती हैं।
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