आज है विक्रम संवत् 2081 के श्रावण माह के कृष्णपक्ष की सप्तमी तिथि रात 09:18 बजे तक यानी शनिवार, 27 जुलाई 2024
' पाकिस्तानी हूं पर आत्मा हिंदुस्तानी है ' कहने वाले उदारवादी इस्लाम के समर्थक और बेख़ौफ़ पत्रकार तारिक फ़तह का निधन 

बेख़ौफ़ पत्रकार तारिक फ़तेह का निधन 

श्रद्धांजलि

' पाकिस्तानी हूं पर आत्मा हिंदुस्तानी है ' कहने वाले उदारवादी इस्लाम के समर्थक और बेख़ौफ़ पत्रकार तारिक फ़तह का निधन 

श्रद्धांजलि///Otawa :

पाकिस्तानी मूल के प्रगतिशील कनाडाई लेखक तारिक फतह का निधन हो गया है। उन्होंने 73 साल की उम्र में आज आखिरी सांस ली।वह लंबे अरसे से बीमार चल रहे थे। वे अपने इस कथन के कारण में काफी जाने जाते थे कि मेरा शरीर भले ही पाकिस्तानी हो पर मेरी आत्मा हमेशा हिन्दुस्तानी थी , है और रहेगी ।

तारिक फतह अपने प्रगतिशील विचारों और इस्लाम के आलोचना के कारण भारत में दक्षिणपंथी समूहों के बीच काफी लोकप्रिय थे, जबकि कट्टर मुस्लिम समुदाय उन्हें पसंद नहीं करता था । " चेजिंग अ मिराज: द ट्रैजिक इल्लुझ़न ऑफ़ ऐन इस्लामिक स्टेट " प्रसिद्ध कृति के लेखक तारिक़ फ़तह इस्लामी अतिवाद के ख़िलाफ़ बोलने और एक उदारवादी इस्लाम के पक्ष को बढ़ावा देने के लिए प्रसिद्ध थे।

क्रांति रहे जारी: कहा बेटी नताशा ने 
वे पैदा तो पाकिस्तान में हुए थे परन्तु वो परिवार के साथ कनाडा में रह रहे थे। उनकी बेटी नताशा ने उनके निधन की सूचना दी। नताशा फ़तह ने उनके निधन की खबर देते हुए उन्हें ‘पंजाब का शेर’, ‘हिंदुस्तान का बेटा’, ‘कनाडा को प्यार करने वाला’, ‘सच बोलने वाला’, ‘न्याय के लिए लड़ने वाला’ और ‘दबे-कुचले लोगों की आवाज’ करार दिया। उन्होंने लिखा कि तारिक फ़तह ने आखिरकार अपनी मशाल आगे सौंप दी है। साथ ही उन्होंने उम्मीद जताई कि उनके द्वारा शुरू की गई क्रांति उन लोगों के साथ जारी रहेगी, जो उन्हें जानते और प्यार करते थे।

कट्टर मुस्लिमों ने मौत पर दिखाए रंग 
असली इस्लाम के इतिहास पर पुस्तकें लिख चुके तारिक फतह से कट्टर मुस्लिम बिलकुल पसंद नहीं करते थे, जो उनके निधन के बाद भी दिख रहा है। कई कट्टर मुस्लिमों ने उनके निधन पर ख़ुशी मनाना शुरू कर दिया है और सोशल मीडिया पर उनके निधन की खबर पर ‘हाहा’ रिएक्शंस डाले जा रहे हैं।

बेधड़क पत्रकार थे तारिक फ़तह
उनका जन्म 20 नवंबर, 1949 को कराची में हुआ था। विभाजन के दौरान वे अपने परिवार के साथ बॉम्बे से कराची चले गए थे। 60 और 70 के दशक में उन्होंने एक क्रांतिकारी छात्र नेता के रूप में अपनी पहचान बनाई। फिर वो अपनी बेधड़क पत्रकारिता के लिए पहचाने जाने लगे। पाकिस्तान की सरकार और फ़ौज को उनका ये रवैया पसंद नहीं आया, जिस कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा। उन्हें पाकिस्तान छोड़ कर कनाडा में शरण लेनी पड़ी थी ।
 

You can share this post!

author

सौम्या बी श्रीवास्तव

By News Thikhana

Comments

Leave Comments