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                                                भेड़चाल...वूमेंस डे की

8 मार्च, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

सामाजिक

भेड़चाल...वूमेंस डे की

सामाजिक//Rajasthan/Jaipur :

"बंद कर  रखे हैं मैंने अपने whatsapp के सारे ऑटोमेटिक डाउनलोड !  अब ना ही कोई इमेज, ना वीडियो ,ना gif ...

 आज वूमेंस डे है तो सोचती हूं 8 मार्च को आए हुए सोशल मीडिया तूफान* के बारे में....

8 मार्च के आने से पहले से ही शुरू हो जाता है स्त्री सशक्तिकरण के दिखावे का चलन,  मुझमें एक चिड़चिड़ापन और कड़वाहट भर देता था। हर पोस्ट में स्त्री का गुणगान गाया जाता रहा है ...   उसकी सहनशक्ति, ममता, शालीनता की दुहाई दी जा रही है !  हजारों शॉर्ट फिल्में अचानक ही facebook , twitter और whatsapp पर अवतरित होने लगती हैं। बाढ़ सी आ जाती है ऐसी पोस्टों की !

..और 8 मार्च बीतते ही सब अचानक खत्म.... whatsapp पर एक पोस्ट आई थी "अगर यह दिन महिला दिवस है तो क्या होता है रोज महिलाओं के लिए ?" इस बात का महिला दिवस मनाने वाली महिला ने जवाब दिया कि यह दिन कर्मठ, स्नेही, महिलाओं को सम्मानित करने का है।  

मुझे तो झल्लाहट होती रही कि दिनभर सारी महिलाएं एक दूसरे को मैसेज भेज-भेज कर वुमंस डे विश करती रहीं, फालतू फॉर वर्ड्स का तामझाम पर फर्क कुछ नहीं।  रोना तो वह भी रोती रहीं, फिर भी हैप्पी वूमंस डे !

 कोई इस दिन बाहर लंच करके खुश रहा, कोई मूवी देख कर, तो कोई गोलगप्पे खा कर ही अपनी आजादी का जश्न मना कर खुश रहा।  दिन भर यही सब....और 9 तारीख को जैसे सोशल मीडिया पर यह तूफान थम सा गया  ! लेकिन रुकिए.... अभी बहुत से त्योहार और फलाने डेज आने को हैं ....अब फिर से यही सब नए सिरे से शुरू हो चुका है..... त्योहारों और उसके बाद तक त्योहारों और उसके महत्व  पर जोक्स बनेंगे और  क्लिक्सशेयर और फॉरवर्ड  के खेल में कंपनियां दीवाली मनाएंगी |

  आपको नहीं लगता कि आज के दौर में हर त्योहार, हर रिश्ते, हर भगवान और हर चीज का बाजारीकरण हो चुका है ? दो दशक पहले हम ग्रीटिंग कार्ड्स के लिए कहते थे, आर्चीज, हॉलमार्क आदि कंपनीज पर रिश्तो के बाजारीकरण का इल्जाम लगता था पर अब देखा जाए तो रिश्तो, तीज-त्योहारों के बाजारीकरण की सारी सीमाएं टूट चुकी हैं। हर उस बात पर जोक बन जाते हैं, जो बेहद संजीदा मानी जाती थी  पर आज ना ही किसी बात का कोई महत्व है या ना कोई संजीदगी ! हम अपनी भावी पीढ़ी को किस ओर ले जा रहे हैं ????

  Pure commercialisation of everything ! 
  आज बच्चा भी पैसों और बाजार के महत्व को समझने लगा है। भावनाओं का मतलब उसे बोल कर समझाना पड़ता है।
 अच्छा, जरा पता लगाएं कि क्या सारी औरतों के पतियों ने अपनी पत्नियों को वूमेंस डे पर विश किया?

और अगर किया भी होगा, तो औरत की महानता गिनाने और पूर्वज महिलाओं की दयनीय स्थिति पर तरस खाने के अलावा, कोई और सार्थक कदम उठाया ??? अपने अंदर बदलाव लाने का संकल्प मात्र ही किया क्या? 

मुझे मेरे कई पुरुष सहकर्मियों ने महिला दिवस की बधाई दी। सच कहूं, तो समझ में नहीं आया कि react कैसे करूं उनके सामने ! ऐसे लगा मानो मैं अबला से सबला बन चुकी हूं और इसी बात की मुझे बधाई दी जा रही है... महसूस हुआ कि मेरे समाज की कितनी ही औरतें अबला जीवन जी चुकी है और इस संघर्ष में साथ दे रहा है यह महिला दिवस  लेकिन आज भी अगर आप अपने surroundings में देखें,  तो हजारों अबलाएं आसानी से दिख जाएंगी जो एक दूसरे को हैप्पी वूमेंस डे विश कर रही हैं.. सब कर रहे हैं इसलिए करना है.... बिना दिमाग लगाए .. वही भेड़चाल........बेबात.... बेमतलब....

 महिला दिवस मनाना ही है तो उन महिलाओं को सबसे पहले खुद का सम्मान करना सीखना होगा..... औरत को औरत की ही दुश्मन बनने से रोकना होगा और....बाकियों को अगर वाकई में महिला दिवस विश करना है तो महिलाओं से अपेक्षाएं छोड़िए ..सिर्फ उनसे ही आदर्श बनने,  त्याग की मूर्ति बनने की कामना मत कीजिए...एक पत्नी के सफल होने का सारा श्रेय, उसके पति को ही ही मत दे डालिए, वह भी सिर्फ इसलिए कि उसने उसे इतनी आजादी दी बल्कि उसके परिश्रम को दीजिये।  मां के सारे त्याग को सिर्फ सलाम मत कीजिए... बल्कि उसके दुखों को, जिम्मेदारियों को कम करने का प्रयास करिए ...औरत के मल्टीटास्किंग होने का गुणगान मत गाइए,.. बल्कि खुद भी उसके साथ खड़े होकर उसका बोझ बांटिए।  उसे भी आलसी,.. लापरवाह,..मस्त.,.गैरजिम्मेदार,.. ठहाके लगाके हंसने वाली..गलतियों से सीखने वाली... बाहर की दुनिया देखकर महसूस करने वाली,..अपना खुद का निर्णय लेने वाली ...या फिर नौसिखिया ...ही बने रहने दीजिए ...उसको  औरत रूपी इंसान  ही बने रहने दीजिए ...भगवान की जगह बैठा कर उसका मानसिक शोषण बंद हो....  तभी इस महिला दिवस को मनाने की सार्थकता है।

वरना हर साल फिर इधर का कॉपी-पेस्ट उधर और उधर का फॉरवर्ड मैसेज इधर भेजते रहें और इस इंटरनेट के बाजार में भेड़चाल का हिस्सा बनते रहें और महिला दिवस का दिन मनाते रहें।  बस इतनी ही सार्थकता "8 मार्च वूमेंस डे" की रह जाएगी 

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सौम्या बी श्रीवास्तव

By News Thikhana

Comments

  • shekhar, Mar-11-2023

    वाह। सुंदर एवं सार्थक आलेख और प्रासंगिक भी

  • Ravindra Gangwar, Mar-11-2023

    बहुत सुंदर लेख, हम सबको अंतःकरण से सोचना होगा, एक स्त्री के घर/समाज में दिये गये योगदान को समझना होगा।

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