एजुकेशन, जॉब्स और करियर//Madhya Pradesh/Ujjain :
इसी वर्ष अप्रैल में मध्य प्रदेश की एतिहासिक नगरी उज्जैन में महाकुंभ है और यह महाकुंभ होगा इतिहासकारों और पुरातत्वविदों का। इसमें देशभर से विद्वान इस मकाकुंभ में पधारने वाले हैं और वे यहां पर मंथन और शोध प्रस्तुत करने के बाद नया इतिहास लिखने की संभावनाओं को टटोलेंगे।
पुरातत्वविद् डॉ. रमण सोलंकी ने इस सारी कावयद के बारे में विस्तार से बताया कि इसी साल सात से नौ अप्रैल तक उज्जैन में इतिहास समागम देवास रोड स्थित विक्रम कीर्ति मंदिर में आयोजित होने जा रहा है। यह आयोजन तीन वर्षों से निरंतर महाराजा विक्रम शोध पीठ मध्यप्रदेश शासन द्वारा किया जा रहा है। विक्रम विश्वविद्यालय, अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना और अश्विनी शोध संस्थान महिदपुर मिलकर आयोजन करते रहे हैं। सोलंकी का कहना है कि आजादी के बाद इतिहासकारों ने देश के इतिहास को विकृत कर पेश किया है। सही इतिहास को कभी सामने ही नहीं आने दिया। हम इस आयोजन के माध्यम से इन इतिहासकारों के लिखे इतिहास के बजाय सही इतिहास को सब तक पहुंचाना चाहते हैं।
उनका कहना है कि आज के समय में देश के इतिहासकार जमीन के गर्त में इतिहास खोज रहे हैं। नया इतिहास लेखन कर इतिहास का नवनिर्माण कर रहे हैं। विकृत इतिहास लिखने वाले इतिहासकारों ने आज तक रामायण व महाभारत के प्रमाण भी प्रस्तुत नहीं किए हैं। साथ ही सफल सभ्यताओं और लिपियों के विस्तारीकरण को भी नहीं बताया है। जो इतिहास बताया गया है, उसमें महापुरुषों की गलत और विकृत जानकारी दी गई है।
तीन दिवसीय महाकुंभ में क्या-क्या होगा
देशभर के नामचीन इतिहासकार सात अप्रैल 2024 को इस समागम में शामिल होंगे। वे शोध पत्र लेकर आएंगे। चुनींदा इतिहासकार आठ अप्रैल को शोध पत्र का वाचन करेंगे। नौ अप्रैल को गुड़ी पड़वा के दिन इस समागम का समापन होगा। इतिहासकारों के इस समागम में योजनाबद्ध और लिपिबद्ध तरीके से शासन को इतिहास में बदलाव लाने का प्रस्ताव दिया जाएगा। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ। मोहन यादव इस संस्था के संरक्षक हैं। उन्होंने ही इतिहास समागम की शुरुआत की थी। वर्तमान में भी उनके मार्गदर्शन में ही यह कार्यक्रम आयोजित हो रहा है।
जन-जन के प्रिय राजा थे सम्राट विक्रमादित्य
डॉ. आरसी ठाकुर ने कहा कि सम्राट विक्रमादित्य संवत् प्रवर्तक थे, उन्हें भुला दिया गया है। आज के समय में इतिहास को फिर से लिखने की आवश्यकता है। हमारे इतिहास को मुगलों और आजादी के पहले अंग्रेजों ने विकृत है। हमारे पास कई ऐसी सील व सिक्के हैं जो महाराजा विक्रमादित्य के होने की पुष्टि करते हैं। वह कोई किंवदंती नहीं बल्कि हकीकत थे। अश्विनी शोध संस्थान महिदपुर के निदेशक डॉ. आरसी ठाकुर ने कहा कि आज हमारे पास सिक्के, मूर्तियां, खिलौने, आभूषण व कई ऐसे ग्रंथ प्रमाण के रूप में मौजूद हैं, जिनसे पता चलता है कि राजा विक्रमादित्य जन-जन के प्रिय राजा थे। सम्राट विक्रमादित्य ने ही अयोध्या में भगवान श्री राम और माता सीता की मूर्ति स्थापित की थी। वामपंथी साहित्यकार व इतिहासकारों ने हमें गलत जानकारी दी। प्राचीन इतिहास को लोगों को सही तरीके से दिखाना और सही जानकारी देना ही हमारा उद्देश्य है।
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