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देश में अलग-अलग अंदाज में मनाई जा रही है होली, कहीं 6 मार्च को ही हो चुका होलिका दहन तो कहीं 7 मार्च को हुआ और आज खेला जा रहा है रंग ..

होलिका दहन

होळी रो धमाल

देश में अलग-अलग अंदाज में मनाई जा रही है होली, कहीं 6 मार्च को ही हो चुका होलिका दहन तो कहीं 7 मार्च को हुआ और आज खेला जा रहा है रंग ..

होळी रो धमाल/बहारें होली की/Rajasthan/Jaipur :

भारत में अलग-अलग स्थानों पर महापर्व होली अलग-अलग समयानुसार मनायी जा रही है। कहीं पर आज 6 मार्च को होलिका दहन हुआ और घुलण्डी मनायी गई यानी रंग खेला गया तो कहीं पर आज, मंगलवार 7 मार्च को होलिका दहन हुआ और अब 8 मार्च को धुलण्डी मनायी जानी है।

अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग परंपराएं भी बनी हुई हैं और लोग इन परंपराओं का अब भी निर्वहन करते ही है।

जयपुर में अनूठी परंपरा

जयपुर यानी पिंकसिटी का आर्किटेक्चर बहुत ही मशहूर है। हालांकि इस शहर का काफी विस्तार हो चुका है लेकिन चारदीवारी के भीतर रहने वाले लोग एक परंपरा का निर्वहन आज भी कर रहे हैं। चौतरफा दीवारों से घिरे पुराने जयपुर में परंपरा है कि होलिका दहन के लिए अलग से अग्नि प्रज्ज्वलित नहीं की जाती। पुराने जयपुर के मोहल्लों में होलिका दहन के लिए विशेष अग्नि जयपुर के राजपरिवार के निवास यानी सिटीपैलेस की होली से निकाल कर लायी जाती है। जयपुर में पहले सिटी पैलेस की होलिका का सबसे पहले दहन किया जाता है और विभिन्न मोहल्लों से आए हुए युवा इस होली से अग्नि से लेकर जल्दी-जल्दी दुपहिया वाहनों पर अपने मोहल्लों की ओर दौड़ लगाते हैं। यद्यपि यह बहुत ही जोखिमपूर्ण होता है लेकिन आज भी पुराने जयपुर में इस प्रथा को अपनाया जाता है। 

 

 

मैनपुरी में ठाकुर जी की यात्रा

होली खेलने के लिए भी भारत के कोने-कोने में अलग-अलग परंपराएं है। आगरा मंडल के जिला मैनपुरी में आज भी ठाकुर जी यानी कृष्ण-बलदाऊ की यात्रा निकाली जाती है। यह यात्रा गलियों से गुजरती हुई गणेश मंदिर स्थित राधा जी के मंदिर तक जाती है। ठाकुर जी अगले दिन राधा जी के मंदिर से यात्रा के साथ वापस अपने ठिकाने यानी मूल मंदिर तक पहुंचते हैं। इस दौरान यात्रा में शामिल लोग होलियां गाते हुए चलते हैं। घर-घर ठाकुर जी पूजे जाते हैं और उनके साथ होली खेलने के नाम पर यात्रा में शामिल लोगों पर रंग फेंका जाता है। टेसू के फूलों से बने रंगीन और गुनगुने पानी की बौछारों का आनंद अलग ही है। कोई भी इसमें बचने की कोशिश करता हुआ दिखाई नहीं देता। ठाकुर जी की यात्रा के दौरान होली की विशेषता यह है कि पहले दिन की ठाकुर जी यात्रा जिस समय घर के सामने से गुजरती है, उस घर में उसी समय से ही होली खेलने की शुरुआत होती है। इसके बाद दूसरे दिन जब यात्रा वापस लौटती है तो जिस घर के बाहर से यात्रा गुजर जाती है, उस घर में उसी समय एक वर्ष तक के लिए होली खेलना समाप्त हो जाता है।

 

ताड़केश्वर मंदिर के बाहर होली

जयपुर के ताड़केश्वर की मंदिर के आगे भी लोग एकत्र हुए रंग-गुलाल से जमकर होली खेली।

 

एक नयी होली..समझाए लै अपने लाला को..

 

 

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