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तीन लोक नौ खंड में, कार्यपालिका से बड़ा न कोय..!

मनोरंजन चैनल सोनी सब टीवी से साभार

साहित्य

तीन लोक नौ खंड में, कार्यपालिका से बड़ा न कोय..!

साहित्य//Madhya Pradesh/Indore :

भ्रष्टाचार कालजयी होने से यह रचना भी कालजयी है, जब अवमानना याचिका के उत्तर में कार्यपालिका मान. उच्च न्यायालय को लिखित में असत्य वक्तव्य देने लगे तो मेरे जैसे अल्पज्ञ के मन-मस्तिष्क में न्यायपालिका के अस्तित्व के औचित्य पर उठ रहे प्रश्नों को प्रतिबन्धित करने के लिए न्यायपालिका के गौरव और सम्मान को लौटाना ही होगा I मेरे 1975 से लेकर 2023 तक के जीवन का निचोड़ है कि भ्रष्टाचार व्यवस्था की जीवनीशक्ति है I

ये पूर्णरूप से काल्पनिक सत्यकथा है, परन्तु इसे एक अति विशेष चश्मे से ही पढ़े, जिसमें “काम किए जा फल की इच्छा मत कर”, “स्वयं का दीपक स्वयं बनो”, “वही होता है, जो भाग्य में लिखा होता है”, “लोकतंत्र पर काली छाया” आदि से प्रोसेस्ड ग्लासेस हों I

पुरानी बात है, एक राजा ने चुनाव के ठीक पूर्व दमखम के साथ और सम्मोहक वाणी में सार्वजनिक घोषणा की कि भ्रष्टाचार करने वाले को जमीन में गाड़ दिया जाएगा I हरेक नागरिक ने अपने-अपने जीवन को नरक बनाने वाले भ्रष्ट लोगों को अपनी कल्पना में ही जमीन में गड़ा हुआ देखना आरम्भ कर स्वयं को सुखी अनुभव किया, ठीक वैसे ही जैसे ढेरों डिग्रियों को धारण करने वाले महान अर्थशास्त्री श्री मनमोहन सिंहजी ने तांत्रिक के कहने पर एक हजार टन सोना जमीन के अन्दर देख कर अत्यन्त प्रसन्नता का अनुभव किया था I अस्तु, जनता ने कथित रूप से बहुत लोकप्रिय राजा को पुन: पूर्ण बहुमत का उपहार दे डाला I राजा ने अपनी प्रजा को सभी सुविधाओं का लाभ कथित रूप से बिना विलम्ब दिलवाने की दृष्टि से अपने अत्यधिक विद्वान और योग्य संत्रियों की एक हाई पॉवर समिति गठित की I राजा ने कहा कि आप सभी लोग बहुत सोच-समझकर एक ऐसा सिस्टम तैयार करिए ताकि जनता का काम मात्र एक आवेदन देने के उपरान्त समयसीमा में सम्पन्न हो सकें I यह सिस्टम फुलप्रूफ होना चाहिए I ऐसा नहीं हो कि जनता अपने संवैधानिक कामों के लिए सालोंसाल तक सरकारी कार्यालयों, अधिकारियों, नेताओं, तांत्रिकों, ओझाओं, ज्योतिषियों आदि के चक्कर लगा-लगा कर निराश हो जाए, अवसाद ग्रस्त हो जाए या आत्महत्या कर लें और दिल्ली दरबार तक अपनी समस्या बताने को विवश हो जाए या फिर न्यायालय जाने को विवश हों I ऐसा हुआ तो प्रदेशभर के समाचार पत्रों में मेरी योग्यता पर प्रश्न उठने लगेंगे और आला कमान भी अप्रसन्न हो जाएगा I मुझे आप सभी की योग्यता पर पूरा-पूरा विश्वास है, योजना बनाइए और मेरे समक्ष प्रस्तुत कीजिए I

सभी उच्च शिक्षित थे और उन्होंने जनता के दुखदर्द दूर करने तथा सम्भावित और आकस्मिक समस्याओं के समाधान की दृष्टि से देश के सबसे बड़े संस्थान में अत्यधिक उच्च स्तर का अति विशिष्ट प्रशिक्षण प्राप्त किया था I उन्होंने आननफानन में शासकीय कार्यालयों में नागरिकों की लालफीताशाही में दम तोड़ चुकी आशाओं वाले आवेदनों को निकलवाया, साथ ही प्रदेश के न्यायालयों में दायर याचिकाओं और अवमानना याचिकाओं का अत्यन्त ही गहनता और समग्रता से अध्ययन किया I इसतरह एक माह उपरान्त उन्होंने सटीक और अमोघ योजना बना डाली I

राजा की अध्यक्षता में बैठक शुरू हुई I मुख्य संत्री ने प्रतिवेदन प्रस्तुत किया कि चाहे जन्म-मृत्यु या विवाह प्रमाणपत्र हो, अथवा स्कालरशिप, अंकसूची, उपाधि का आवेदन हो, मुआवजे का प्रकरण हो या अपने घर, भूखण्ड या कृषि भूमि से सम्बन्धित कोई आवेदन हो, सरकारी नौकरों की पदोन्नति, समयमान योजना, समयबद्ध पदोन्नति का प्रकरण हो, किंवा किसी भी प्रकार का आवेदन हो, उस आवेदन के साथ-साथ नागरिक को एक हजार एक सौ इक्कावन रुपए और जन्म कुण्डली भी जमा करना होगी I

राजा चौंका और क्रोध में उबलते हुआ खड़ा हो गया और बोला – ये क्या मूर्खता है?

मुख्य संत्री –राजन ! शान्त हो जाइए और उसने चपरासी को आवाज लगाई, जरा डॉ. प्रारब्ध कुमार की फाइल लाना I और बोला- राजन ! क्या आप राम को भगवान मानते हैं?

राजा – हाँ, मानता हूँ, वे हमारे आराध्य हैं, सभी सनातनियों की गहरी आस्था के प्रतीक हैं, हमारे अवतार हैं I

मुख्य संन्त्री – राजन ! वे भगवान थे फिर भी उन्हें भाग्यवश वनवास जाना पड़ा? उनके राज्याभिषेक का मुहूर्त बड़े-बड़े महापण्डितों और ज्योतिषियों ने निकाला था, विदेहराज जनक की राजकुमारी तक को रघुकुल शिरोमणि और उनके भ्राता के साथ 14 वर्ष पैदल-पैदल वन्यजीवों से बचते-बचाते वनवास भ्रमण करना पड़ा, कन्द- मूल, पत्तियां फल खाने पड़े, नदियों-झरनों का पानी पीना पड़ा, चक्रवर्ती सम्राट के पुत्र होते हुए भी वल्कल वस्त्रों में बिना नौकर-चाकर के दर-दर अपना आहार खोजना पड़ा I घास फूस की शैया पर सोना पड़ा, आखिर क्यों, राजन ! आखिर क्यों? सब भाग्य का खेल है I  

राजा- क्योंकि शबरी माता, निषादराज से भेंट कर सामाजिक समरसता का पाठ पढ़ाना था, अहल्या का उद्धार कर नारी के सशक्तिकरण के सन्देश को व्यापक करना था I साथ ही अन्याय के शिकार सुग्रीव की सहायता करना थी, मुनियों की तपस्या में बाधक राक्षसों का वध करना था और अहंकारी रावण का गर्व चूर-चूर करना था I

मुख्य संत्री- राजन ! अवतारी और सर्वशक्तिमान भगवान राम, ये सब कार्य बिना वनवास जाए भी कर सकते थे I भगवान महावीर के कानों में कीलें ठोंकी गई, क्योंकि कई जन्मों पूर्व उन्होंने अपने शैया पालक के कानों में गरम-गरम पिघला हुआ सीसा डलवाया था I सुदर्शन चक्रधारी भगवान श्रीकृष्ण के प्राण बहेलिए ने ले लिए और उनके सामने ही उनके समूचे कुल का नाश हो गया I उनकी प्रिय बहन द्रोपदी की सभी संतानों ने उनके सामने ही प्राण गँवा दिए I और भी ढेरों उदाहरण हैं, राजन ! ये सब भाग्य के खेल हैं, कर्म किया है तो  उसे भोगना ही पड़ेगा I राजन ! ये आपकी दाहिने ओर हजारों फाइलों के बड़े-बड़े पोटलें रखें हैं, इनमें उन लाखों नागरिकों की फाइलें हैं, जिनका अधिकार तो था परन्तु अधिकारियों के भरपूर प्रयासों के उपरान्त भी उनके भाग्य में नहीं होने से उन्हें मरते दम तक लाभ नहीं मिला I आपकी बाईं ओर जो हजारों फाइलें रखी हुई हैं, ये उन लोगों से सम्बन्धित हैं, जिनके पक्ष में न्यायालयों ने निर्णय दिया था, परन्तु दुर्भाग्यवश उनमें से अनेकों को अवमानना याचिका के बाद भी लाभ नहीं मिल पाया I ये जो आपके सामने की दीवार के पास जो लाखों फाइलें रखी हैं, ये उन लोगों की हैं, जिन्हें अधिकार तो नहीं था परन्तु उनके भाग्य में लाभ लिखा था, इसलिए ‘भाई-भतीजावाद’, ‘रिश्वत’ या रिकमन्डेशन’ अथवा ‘सारे नियम शिथिल कर’ इन्हें पूरा-पूरा लाभ दिया गया था I राजन ! सब भाग्य का खेल है I  

राजा- हाँ, मैं आपसे सहमत तो हूँ, परन्तु थोड़ी-सी जिज्ञासा और संशय शेष है I

मुख्य संत्री- राजन ! इसीलिए तो डॉ. प्रारब्ध कुमार की फाइल बुलवाई है I इस व्यक्ति की सत्य कथा कदाचित पूरे देश में इकलौता उदाहरण होगा, जिसके तहत हम विपक्षियों, पत्रकारों और सामान्य नागरिकों को भाग्य को सर्वोपरि सिद्ध करने में सक्षम होंगे I

राजा [आश्चर्य से ऐसा क्या]– अवश्य बताओ, प्रारब्ध कुमार की विचित्र कथा I 

मुख्य संत्री- ये व्यक्ति एक कॉलेज में काम करता था, इसके विभागाध्यक्ष ने अपने विरुद्ध चल रही विशेष जांच में प्रारब्ध कुमार को झूठे बयान देने का दबाव बनाया, परन्तु इसने झूठ नहीं बोला और फिर विभागाध्यक्ष का कोपभाजन बना और ऐसा दण्ड दिया गया, जो उसे दिया जाना अवैधानिक था I वह कोर्ट पहुंचा, अत्यन्त विद्वान अभिभाषक थे, सारे साक्ष्य इसके पक्ष में थे, परन्तु हाई कोर्ट ने सालों तक  अन्तिम सुनवाई ही नहीं की, परिणामस्वरूप लगभग साढ़े पांच साल तक बिना वेतन गुजारा करना पड़ा I इसे 1999 से क्रमोन्नति का लाभ मिलना था, दुर्भाग्यवश नहीं मिला I इसे 2003 और 2008 में पदोन्नतियों का संवैधानिक अधिकार था, बेचारे ने बहुत हाथ-पैर मारें, लाभ नहीं मिला I और तो और इससे 28 वर्ष बाद शासकीय सेवा में आई, इसी की छात्रा तक इससे दो पद ऊपर जा पहुँची I

राजा – क्या बात करते हो? हे भगवान ! अपमान की इतनी पराकाष्ठा?

मुख्य संत्री – राजन ! ये सब भाग्य का खेल है I 

राजा- हाँ, यह सौ प्रतिशत सत्य है, इसीलिए आप लोग इतने पढ़े लिखें हैं और मेरे अधीन काम करने को विवश हैं I

मुख्य संत्री [मस्का लगाते हुए] - राजन ! ऐसा नहीं है, आपकी सबसे बड़ी योग्यता तो विराट जन समर्थन है, वही आपकी सबसे बड़ी शक्ति भी है I उसका हमारे पास सर्वथा अभाव है I राजन ! सच तो यह है कि भाग्य सर्वोपरि है I प्रारब्ध कुमार की पूरी कथा में पग-पग पर भाग्य ने अपना खेल खेला है I दुर्भाग्य देखिए कि विभागीय मंत्री द्वारा हस्ताक्षरित ग्रेड पे की नोटशीट पर अधिकारी ने हस्ताक्षर नहीं किए I समयबद्ध पदोन्नति की अहर्ता थी, मंत्रीजी के सख्त और स्पष्ट निर्देश थे, परन्तु अधिकार की अनदेखी कर उसे पदोन्नति से वंचित रखा I और तो और समयमान वेतनमान के लिए विभागीय मंत्री ने सम्बन्धित अधिकारी को स्वयं चिट्ठी लिखी थी, भाग्यवश मंत्री की अनुशंसा को भी नहीं माना गया I थक हार कर उसने हाई कोर्ट में याचिका लगा दी और निर्णय पक्ष में आया, फिर भी भाग्यवश नहीं मिला I इसने न्यायालय की अवमानना का प्रकरण दर्ज करवाया I फिर आदेश निकला कि प्रारब्ध कुमार सहित तीन व्यक्तियों को लाभ दिया जाए परन्तु दो लोगों को तो लाभ मिल गया परन्तु भाग्यवश इसे लाभ नहीं मिला I

राजा- ऐसा कैसे सम्भव है, एक ही आदेश के तहत दो को लाभ दिया और एक को छोड़ दिया गया?

मुख्य संत्री – राजन ! यही तो भाग्य का खेला है I नियति का खेल देखिए कि उच्चाधिकारियों ने न्यायालय में लिखकर दे दिया कि आदेश का पालन कर दिया गया है I राजन ! अधिकारी निर्दोष हैं, अधिकारियों से ऐसा सफेद झूठ प्रारब्ध कुमार की  कुण्डली में पड़े ग्रहों ने लिखवाया I वैसे वह सम्मानित व्यक्ति है, ख्यात लेखक है I प्रारब्ध कुमार ने पूरे पच्चीस वर्षों तक राजधानी जाकर नेताओं, मंत्रियों, अधिकारियों से मिला, ज्योतिषियों के चक्कर काटें, मन्त्र, मनौती, जप-तप सभी निष्ठा से किए, तीर्थाटन किए, समाचार पत्रों में लिखा परन्तु असफलता ही हाथ लगी I

राजा- बाप रे बाप ! भाग्य ने इस सीमा तक जाकर उसे हैरान-परेशान और निराश किया I क्या उसने पीएमओ को शिकायतें नहीं की ?

मुख्य संत्री – राजन ! दर्जनों बार प्रधानमन्त्रीजी और अन्यों को शिकायतें की परन्तु कुछ हुआ नहीं I आश्चर्य की बात है कि सामान्य भविष्य निधि पाने तक के लिए इसने कई शिकायतें की, सीएम हेल्पलाइन के तहत इसकी शिकायत 14 कार्यालयों में गई, परन्तु सभी ने लिख कर दिया कि यह प्रकरण हमारे विभाग से सम्बद्ध नहीं है, एक बार तो महालेखाकार, भविष्य निधि ने ही लिख दिया कि यह हमसे सम्बद्ध नहीं है, भाग्य का खेल है I पेंशन, ग्रेच्युटी, अर्जित अवकाश का नकदीकरण भी इसे पूरे सवा साल तक कठोर संघर्ष के बाद मिल पाए I अपनी 38 साल की नौकरी में, विभागीय विवशता के कारण मात्र एक बार पूरक बैच का परीक्षक बन पाया I पूरे कार्यकाल में मात्र दो छात्रों के शोध के दो को-गाइड में से एक बन पाया I बेचारा, अभी भी न्याय पाने के लिए कठोर और अनथक संघर्ष कर रहा है I यदि ये कुण्डली वाली योजना पहले से होती तो इसे इतना परेशान नहीं होना पड़ता I

राजा- कमाल है, इसने अभी तक हार नहीं मानी I

मुख्य संत्री – राजन ! ये व्यक्ति ‘कर्म किए जा फल की इच्छा मत कर’ जैसे अप्रासंगिक वाक्य पर विश्वास करता है, इसके अतिरिक्त  यह भ्रमजीवी भी है, हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, जैसी आधारहीन पंक्तियों पर विश्वास करता है I

राजा- बेचारा ! ये नहीं जानता कि सत्य परेशान भी होता है और पराजित भी I अस्तु, आप लोगों की योजना से मैं पूर्ण सहमत हूँ I एक काम अनिवार्य रूप से करियेगा, हरेक सरकारी कार्यालय में श्रीराम के वनवास, महावीर स्वामी के कान में कीलें ठोकने और यदुवंश के सर्वनाश एवं भगवान श्रीकृष्ण पर बहेलिये द्वारा बाण संधान के दृश्यों युक्त चित्रकथा के पोस्टर्स अवश्य लगाएं जाएं, इनका शीर्षक होगा “भाग्य ही सर्वोपरि है” और हां, स्कूल तथा उच्च शिक्षा मंत्री को मेरी ओर से आदेशित करना कि इस प्रारब्ध कुमार की कहानी सभी कक्षाओं और पाठ्यक्रमों में अवश्यमेव पढ़ाई जाए I इस पर एक डाक्युमेंटरी भी बनवाने की व्यवस्था करें I इससे सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि जनता अनाचार को भाग्य मानने लगेगी I हरेक शासकीय कार्यालय में इसकी फाइल भी अनिवार्य रूप से रखी जाए और हरेक आवेदक को पढवाई जाए I राज्य के अभिलेखागार में इसकी कुण्डली और कथा रखी जाना सुनिश्चित करें और मैं प्रयास करूंगा कि इसकी कथा और कुण्डली को राष्ट्रीय अभिलेखागार में स्थान मिलें I  

मुख्य संत्री [मक्खन लगाते हुए और अपने साथियों की ओर देखकर आँख मारते हुए] –राजन ! अद्भुत, अनुपम, असाधारण, आपके ये सुझाव अत्यन्त ही रचनात्मक हैं I यही तो अन्तर है, आपमें और हममें I 

राजा [आत्मअभिमान को अपने मुखमण्डल सहित पूरे शरीर में धारण करते हुए] - पर भाई ! आवेदन के साथ इतना अधिक शुल्क और जन्म कुण्डली की क्या आवश्यकता है और इस योजना से जनता को क्या-क्या लाभ हैं?

मुख्य संत्री- राजन ! सबसे पहले प्रत्येक आवेदन को 501/- रुपए दक्षिणा के साथ स्थानीय ज्योतिषी के पास भेजेंगे, पूरे राज्य में लाखों ज्योतिषियों को जीविकोपार्जन प्राप्त होगा, इससे आपके पक्ष में वातावरण बनेगा, बेरोजगारी कम होगी I वे कुण्डली देखकर बताएंगे कि उस नागरिक के भाग्य में चाहा गया लाभ लिखा है या नहीं I जिनके भाग्य में नहीं होगा, उन्हें विनम्रता से मना कर देंगे कि तेरे भाग्य में नहीं है और अब इस विषय में सोचना या प्रयास करना हमेशा के लिए त्याग दें अन्यथा तेरी दुर्गति प्रारब्ध कुमार जैसी होगी तथा नेताओं, वकीलों और अदालतों के चक्कर काट-काट कर तुझे तनावजनित रोग हो जाएंगे I इसतरह भयभीत नागरिक न तो न्यायालय जाएंगे और न ही कहीं भटकेंगे, दरबार के भी चक्कर नहीं काटेंगे, कागज बचेंगे, पेड़ बचेंगे, पर्यावरण बचेगा I जन्म-मृत्यु-विवाह-अंकसूची-उपाधि आदि में सम्बन्धित के फोटो युक्त रंगीन लेमिनेटेड प्रमाणपत्र बिना अतिरिक्त शुल्क के अविलम्ब देने का प्रावधान रहेगा I यह  राशि अलग खाते में जमा होगी और बची हुई राशि को सम्पूर्ण पारदर्शिता के साथ वोटों के प्रतिशत के मान से विरोधी दलों के पार्टीफण्ड के तहत सीधे-सीधे जमा किया जाएगा I इस योजना का कोई विरोध भी नहीं करेगा I

राजा- यदि नागरिक अपने साथ हुए अन्याय के विरुद्ध न्यायालयों में नहीं जाएंगे तो न्यायाधीशों को पेण्डिंग प्रकरण निपटाने का समय मिल जाएगा और इसतरह से भी नागरिकों को इस योजना से परोक्ष लाभ मिलेगा I मैं प्रसन्न और आश्वस्त हूँ, एक काम करिए मैं आप सभी को दो-दो इन्क्रीमेंट देने की स्वीकृति देता हूँ, ऑर्डर बना कर लाइए I

मुख्य संत्री – राजन ! आप आशुतोष हैं और हमें पूरी अपेक्षा थी, इसलिए आर्डर तैयार है I

राजा ने मुस्कराते हुए तुरन्त हस्ताक्षर किए और अपने महल की ओर प्रस्थान कर दिया I       

[मुख्य संत्री ने अपने साथियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि मित्रो ! लोकतन्त्र में कार्यपालिका ही सर्वोपरि थी, है और रहेगी I]

कभी-कभी प्रारब्ध कुमार गुनगुनाता रहता है-  

कर्ता करे न कर सके, अधिकारी करे सो होय,

तीन लोक नौ खंड में, कार्यपालिका से बड़ा न कोय I

भारत भूमि की महिमा अपार,

पग-पग अन्याय, डग-डग भ्रष्टाचार

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डॉ मनोहर भंडारी

By News Thikhana

डॉ. मनोहर भंडारी ने शासकीय मेडिकल कॉलेज, इन्दौर में लंबे समय तक अध्यापन कार्य किया है। वे चिकित्सा के अलावा भी विभिन्न विषयों पर निरंतर लिखते रहते है।

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