सामाजिक//Delhi/New Delhi :
ईरान में चल रहा हिजाब विरोधी आंदोलन जब कई देशों तक पहुंच गया तो वहां की सरकार ने इस मामले में झुकते हुए अनिवार्य हिजाब कानून की समीक्षा करने का फैसला किया।
ईरान के अटॉर्नी जनरल मोहम्मद जफर मोताजेरी ने इस मामले में बयान दिया है कि संसद और न्यायपालिका दोनों ही अनिवार्य हिजाब कानून की समीक्षा करने की दिशा में काम कर रहे हैं। वे यह जांच-परख कर रहे हैं कि क्या इन कानूनों में बदलाव की जरूरत है।
उल्लेखनीय है कि दशकों पुराने ईरान के हिजाब कानून के तहत महिलाओं को सख्त ड्रेस कोड को मानना पड़ता है। इस कानून के विरोध मे प्रदर्शन ईरान में उस समय और उग्र हो गए जब 22 साल की महाशा अमीन की पुलिस की हिरासत में मौत हो गई थी। महाशा शरिया कानून की जिम्मेदारी संभालने वाली मॉरल पुलिस से भिड़ गई थीं। अमीनी की मौत के बाद से न सिर्फ ईरान बल्कि दुनिया के हर हिस्से में बसी ईरानी महिलाओं ने हिजाब को जलाना शुरू कर दिया था। तेहरान के उत्तर में जहां पर फैशन सबसे अहम है वहां पर इस प्रदर्शन को बड़े पैमाने पर देखा गया था।
हालांकि ईरान के सूत्रों के मुताबिक अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि हिजाब संबंधी कानूनों में कैसा बदलाव होगा लेकिन ध्यान रखने वाली बात यह है कि ईरान के ये कानून ज्यादातर रूढ़िवादी राजनेताओं के हाथ में हैं। पिछले हफ्ते ही एक टीम ने संसद के सांस्कृतिक आयोग से मुलाकात की है। माना जा रहा है कि अगले एक दो हफ्ते में इस मुलाकात का नतीजा आ जाएगा। राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने भी शनिवार को कहा कि ईरान के संविधान से जुड़ीं गणतांत्रिक और इस्लामिक संस्थाओं से भी संपर्क किया गया है। बता दें कि रईसी एक मौलाना हैं और उन्हें देश के हर रूढ़िवादी वर्ग का समर्थन हासिल है। रईसी को देश के युवाओं का गुस्सा झेलना पड़ रहा है। ईरान के युवा, हिजाब कानून को 'इस्लामिक समाज में नैतिक भ्रष्टाचार को सुनियोजित तरीके से आगे बढ़ाने का जरिया' मानते हैं।
ईरान में हिजाब कानून के तहत महिलाओं को हर कीमत पर अपने बालों को सार्वजनिक स्थल पर ढंक कर रखना होता है। यहां पर महिलाओं को अपना सिर हर हाल में ढंककर रखना होता है। वो किसी भी सूरत में बालों को कवर किए बिना सार्वजनिक स्थल पर नजर नहीं आ सकती हैं। लेकिन, ये प्रतिबंध कई स्तर पर भेदभाव के साथ लागू होते हैं। ये प्रतिबंध इस बात पर भी निर्भर करते हैं कि महिला का राजनीतिक बैकग्राउंड क्या है?
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