धर्म/कर्मकांड-पूजा/Rajasthan/Jaipur :
कल शीतला अष्टमी है,सर्वविदित है कि देवी शीतला को प्रकृति की उपचार शक्ति माना जाता है ,शीतला माता भी अपने भक्तों के तन-मन को शीतल कर देती है तथा समस्त प्रकार के तापों का नाश करती है। हिन्दू धर्म के अनुसार शीतला सप्तमी-अष्टमी को महिलाएं अपने परिवार की सुख, शांति और सेहत के लिए रंगपंचमी से अष्टमी तक माता शीतला को बासौड़ा बनाकर पूजती है। शीतला अष्टमी के दृष्टिगत आज हम आपको बताएंगे कि हमारे हिन्दू कर्मकांड भी वैज्ञानिक दृष्टि से कितने प्रासंगिक होते हैं।
मां शीतला यह व्रत वास्तव में यह एक वैज्ञानिक पर्व है। गर्मी की विधिवत शुरुआत इसी दिन से मानी जाती है। यह त्योहार सांकेतिक रूप से यह बताता है कि इस दिन के बाद से बासी आहार ग्रहण नहीं करना चाहिए। गर्म पानी से नहीं नहाना चाहिए। शीतल भोजन ग्रहण करना चाहिए।
ग्रीष्म है पित्त विकार होने का मौसम
चैत्र महीने से जब गर्मी प्रारंभ हो जाती है तो शरीर में अनेक प्रकार के पित्त विकार भी शुरू हो जाते हैं। अत: इस समय मनुष्य को चेचक के रोग तेजी से फैलते हैं। इनसे बचने के लिए प्राचीन काल से शीतला सप्तमी और शीतलाष्टमी व्रत करने का चलन चला आ रहा है।आयुर्वेद की भाषा में चेचक का ही नाम शीतला कहा गया है। अतः इस उपासना से शारीरिक शुद्ध, मानसिक पवित्रता और खान-पान की सावधानियों का संदेश मिलता है।
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शीतलाअष्टमी देती है खान पान की सावधानियों का सन्देश
इस व्रत में चैत्र कृष्ण अष्टमी के दिन शीतल पदार्थों का मां शीतला को भोग लगाया जाता है। चेचक, गलघोंटू, बड़ी माता, छोटी माता, तीव्र दाह, दुर्गंधयुक्त फोड़े, नेत्र रोग और शीतल जनित सभी प्रकार के दोष शीतला माता की आराधना, पूजा से दूर हो जाएं, ऐसी प्रार्थना की जाती है।
ठन्डे जल और बासी भोजन का भोग
इस पूजन में शीतल जल और बासी भोजन का भोग लगाने का विधान है। शीतलजनित व्याधि से पीड़ितों के लिए यह व्रत हितकारी है। यह व्रत जहां मनुष्य को आध्यात्मिक रूप से मजबूत करता है, वहीं शारीरिक और मानसिक रोगों को दूर करना भी इसका उद्देश्य होता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से यह दिन कई प्रकार के संदेश देता है।
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शीतला माता का वाहन व धारण की गयी सामग्री का महत्त्व
स्कंद पुराण में शीतला देवी शीतला का वाहन गर्दभ बताया है। इनके हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण हैं। इन बातों का प्रतीकात्मक महत्व होता है। चेचक का रोगी व्यग्रतामें वस्त्र उतार देता है। सूप से रोगी को हवा की जाती है, झाडू से चेचक के फोड़े फट जाते हैं। नीम के पत्ते फोडों को सड़ने नहीं देते। रोगी को ठंडा जल प्रिय होता है अत:कलश का महत्व है। गर्दभ की लीद के लेपन से चेचक के दाग मिट जाते हैं। शीतला-मंदिरों में प्राय: माता शीतला को गर्दभ पर ही आसीन दिखाया गया है।
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