Lohri 2024 : आज है एकता, भाईचारे व सौहार्द का त्यौहार लोहड़ी
धर्म/कर्मकांड-पूजा/Punjab/Chandigarh :
लोहड़ी का त्यौहार पंजाब और हरियाणा के प्रमुख त्योहारों में से एक है। नई फसल के आने की खुशी और अगली बुवाई की तैयारी से पहले लोहड़ी के बहाने जश्न मनाया जाता है। लोहड़ी के उत्सव से जुड़ा एक विशेष महत्व यह है कि इस दिन, सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, जिसे शुभ माना जाता है क्योंकि यह एक नई शुरुआत का प्रतीक है।
मकर संक्रांति से एक दिन पहले धूमधाम से लोहड़ी मनाई जाती है। यह त्यौहार पंजाब और हरियाणा के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह कृषि पर्व है और प्रकृति में होने वाले बदलावों को भी दर्शाता है। ऐसा माना जाता है कि लोहड़ी के दिन साल की सबसे लंबी अंतिम रात होती है और अगले दिन से धीरे-धीरे दिन बढ़ने लगता है। इस दौरान किसानों के खेत लहलहाने लगते हैं और वे रबी की फसल को काट कर लाते हैं। नई फसल के आने की खुशी और अगली बुवाई की तैयारी से पहले लोहड़ी के बहाने जश्न मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने परिवार, रिश्तेदारों, करीबियों और पड़ोसियों के साथ इकट्ठा होते हैं। रात के वक्त सब लोग खुले आकाश के नीचे आग जलाकर उसके चारों ओर चक्कर काटते हुए लोक गीत गाते हैं, नाचते हैं और मूंगफली, मकई, रेवड़ी व गजक खाते हैं। यही नहीं यह त्योहार एकता, भाईचारे, प्रेम व सौहार्द का प्रतीक भी है।
लोहड़ी कब है?
हिन्दू पंचांग के अनुसार लोहड़ी हर साल पौष माह की अंतिम रात को मनाई जाती है। हर बार की तरह इस बार भी लोहड़ी 13 जनवरी को मनाई जा रही है। वहीं, मकर संक्रांति 15 जनवरी को है।
लोहड़ी मनाने की कई मान्यताएं प्रचलित
लोहड़ी को लेकर एक मुगल बादशाह अकबर के शासन के दौरान दुल्ला भट्टी नाम का एक शख्स था। वह पंजाब प्रांत में रहता था उसे पंजाब का नायक कहा जाता था। उस वक्त संदलबार नाम की एक जगह थी जो अब पाकिस्तान में है। कहते हैं कि उस वक्त वहां गरीब घर की लड़कियों को अमीरों को बेच दिया जाता था। संदलबार में सुंदरदास नाम का एक किसान था। उसकी दो बेटियां सुंदरी और मुंदरी थीं। गांव का ठेकेदार उसे धमकाता कि वो अपनी बेटियों की शादी उससे करा दे। सुंदरदास ने जब यह बात दुल्ला भट्टी को बताई तो वह ठेकेदार के घर जा पहुंचा। उसने उसके खेत जला दिए और उन लड़कियों की शादी वहां करा दी जहां सुंदरदास यानी उनका पिता चाहता था। यही नहीं उसने लड़कियों को शगुन में शक्कर भी दी। कहते हैं कि तभी से लोहड़ी का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है।
लोहड़ी को लेकर और भी कई मान्यताएं प्रचलित हैं। एक पौराणिक मान्यता के अनुसार प्रजापति दक्ष ने अपनी पुत्री सती के पति महादेव शिव शंकर का तिरस्कार किया था। राजा ने अपने दामाद को यज्ञ में शामिल नहीं किया। इसी बात से नाराज होकर सती ने अग्निकुंड में अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। कहते हैं कि तब से ही प्रायश्चित के रूप में लोहड़ी मनाने का चलन शुरू हुआ। इस दिन विवाहित कन्याओं को घर आमंत्रित कर यथाशक्ति उनका सम्मान किया जाता है। उन्हें भोजन कराया जाता है, उपहार दिए जाते हैं और श्रृंगार का सामान भी भेंट स्वरूप दिया जाता है।
लोहड़ी को लेकर भगवान श्री कृष्ण से जुड़ी कथा भी प्रचलित है। कथा के अनुसार मकर संक्रांति की तैयारी में सभी गोकुलवासी लगे थे। वहीं दूसरी तरफ कंस हमेशा की तरह बाल कृष्ण को मारने के लिए साजिश रच रहा था। उसने बाल कृष्ण को मारने के लिए लोहिता नामक राक्षसी को गोकुल में भेजा था और बालकृष्ण ने खेल-खेल में ही उसे मार दिया था। इस खुशी में मकर संक्रांति से एक दिन पहले लोहरी पर्व मनाया जाता है। लोहिता के प्राण हरण की घटना को याद रखने के लिए इस पर्व का नाम लोहड़ी रखा गया।
लोहड़ी कैसे मनाई जाती है?
लोहड़ी के लिए कई दिनों पहले से ही लकड़ियां इकट्ठा की जाती हैं। पंजाब में तो बच्चे लोक गीत गाते हुए घर-घर जाकर लोहड़ी के लिए लकड़ियां जुटाते हैं। इन लकड़ियों को किसी खुले और बड़े स्थान रखा जाता है, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग वहां इकट्ठा हो सबके साथ त्योहार मना सकें लोहड़ी की रात सभी लोग लकड़ियों के इस झुंड के चारों ओर इकट्ठा होते हैं फिर पारंपरिक तौर-तरीकों से आग लगाई जाती है। इस अग्नि के चारों ओर लोग नाचते-गाते हुए उसमें मूंगफली, गजक, पॉपकॉर्न, मक्का और रेवड़ी की आहुति देते हैं। इस दौरान पारंपरिक लोक गीतों को गाया जाता है। पंजाब में लोग लोकनृत्य भांगड़ा और गिद्धा करते हैं। इस दिन विवाहित बेटियों को आग्रह और प्रेम के साथ घर बुलाया जाता है। उन्हें आदर व सत्कार के साथ भोजन कराया जाता है और कपड़े व उपहार भेंट किए जाते हैं। पंजाबी परिवार में किसी नवजात बच्चे और नवविवाहित जोड़े की पहली लोहड़ी बेहद खास होती है। ऐसे घर में लोहड़ी के मौके पर पार्टी दी जाती है और दूर-दूर से रिश्तेदारों व करीबियों को आमंत्रित किया जाता है। पंजाब के लोग भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बसे हुए हैं। यही वजह है कि दुनिया के कई हिस्सों विशेषकर कनाडा में भी लोहड़ी धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है।
लोहड़ी का पावन लोक गीत
सुंदर मुंदरिये हो, तेरा कौन विचारा हो,
दुल्ला भट्ठी वाला हो, दुल्ले दी धी व्याही हो,
सेर शक्कर पाई हो, कुड़ी दे जेबे पाई हो,
कुड़ी दा लाल पटाका हो, कुड़ी दा सालू पाटा हो,
सालू कौन समेटे हो, चाचे चूरी कुट्टी हो,
जमीदारां लुट्टी हो, जमीदारां सदाए हो,
गिन-गिन पोले लाए हो, इक पोला घट गया,
ज़मींदार वोहटी ले के नस गया, इक पोला होर आया,
ज़मींदार वोहटी ले के दौड़ आया,
सिपाही फेर के लै गया, सिपाही नूं मारी इट्ट, भावें रो ते भावें पिट्ट,
साहनूं दे लोहड़ी, तेरी जीवे जोड़ी
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