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तुर्की के कॉरिडोर का रास्ता कतई आसान नहीं...एर्दोगन को एक्सपर्ट की चेतावनी? 

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तुर्की के कॉरिडोर का रास्ता कतई आसान नहीं...एर्दोगन को एक्सपर्ट की चेतावनी? 

राजनीति///Ankara :

भारत में हुए जी20 सम्मेलन में जब से एक इकोनॉमिक कॉरिडोर का ऐलान किया गया है तभी से तुर्की परेशान है। अब तुर्की ने इस कॉरिडोर का एक विकल्प तलाशा है, जो इराक से कनेक्टेड है। विशेषज्ञों की मानें तो तुर्की का यह फैसला खतरे से खाली नहीं होगा।

नई दिल्ली में हुए जी20 सम्मेलन में भारत, सऊदी अरब, अमेरिका और यूरोप के आर्थिक गलियारे को लेकर जब से ऐलान किया गया है तब से ही तुर्की खासा परेशान है। अब जो खबरें आ रही हैं, उसके मुताबिक तुर्की भारत-मिडिल ईस्ट इकोनॉमिक कॉरिडोर के विकल्प पर क्षेत्रीय साझेदारों के साथ गंभीरता से बातचीत कर रहा है। तुर्की इस विकल्प पर काफी जोर दे रहा है क्योंकि वह माल की आवाजाही के लिए ट्रांसपोर्ट रूट के तौर पर एशिया से लेकर यूरोप तक अपनी ऐतिहासिक भूमिका को मजबूत करना चाहता है। तुर्की के इस विकल्प में इराक को अहमियत दी गई है। वहीं विशेषज्ञों ने इसे आग से खेलने वाला फैसला बताया है।
क्या है तुर्की का मकसद
एक रिपोर्ट के मुताबिक तुर्की मिडिल ईस्ट कॉरिडोर के विरोध में है। इस कॉरिडोर के जरिए भारत, यूएई, सऊदी अरब, जॉर्डन और इजरायल के जरिए यूरोप के बाजारों तक माल पहुंचाएगा। साथ ही, इसे चीन के बढ़ते प्रभाव को कमजोर करने और बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) के विकल्प के तौर पर भी देखा जा रहा है। इस कॉरिडोर को अमेरिका के अलावा यूरोपियन यूनियन का भी समर्थन हासिल है। यह कॉरिडोर तुर्की को पूरी तरह से किनारे कर देगा। 
एर्दोगन को नहीं रास आया आईमैक
राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने जी20 के बाद कहा था कि तुर्की के बिना कोई भी कॉरिडोर संभव नहीं हो सकता है। उनका कहना था कि पूर्व से पश्चिम तक व्यापार के लिए सबसे सही रास्ता तुर्की से होकर गुजरना चाहिए। उनके विदेश मंत्री हकन फिदान ने इसके बाद बयान दिया कि विशेषज्ञों को मिडिल ईस्ट इकोनॉमिक कॉरिडोर के प्राथमिक लक्ष्य तर्कसंगतता और दक्षता को लेकर संदेह है।
क्या है तुर्की का प्लान
तुर्की, पूर्व और पश्चिम के बीच एक पुल के तौर पर अपनी पारंपरिक भूमिका को मजबूत कर इसे आगे बढ़ाना चाहता है। उसका यह इतिहास सिल्क रोड से कई सदियों से जुड़ा है। तुर्की ने अब इराक डवलपमेंट रोड इनीशिएटिव के तौर पर एक विकल्प की वकालत की है। हकन फिदान ने जोर देकर कहा है कि इराक, कतर और यूएई के साथ एक प्रोजेक्ट को लेकर गहन बातचीत चल रही है। अगले कुछ महीनों यह प्रोजेक्ट तैयार कर लिया जाएगा। इराक सरकार की तरफ से जो तस्वीरें जारी की गई हैं, उसके मुताबिक प्रस्तावित 17 अरब डॉलर का रास्ता दक्षिणी इराक के बसरा में ग्रैंड फॉ बंदरगाह से 10 इराकी प्रांतों और तुर्की में माल ले जाएगा। यह योजना 1,200 किमी हाई-स्पीड रेल और समानांतर सड़क नेटवर्क पर निर्भर करेगी।
विशेषज्ञ क्यों हैं परेशान
इस योजना के तीन चरण हैं, पहला चरण साल 2028 में और अंतिम चरण 2050 में पूरा करने का लक्ष्य है। विशेषज्ञों का कहना है कि वित्तीय और सुरक्षा आधार पर इस परियोजना को लेकर कुछ चिंताएं हैं। यूरेशिया ग्रुप थिंक-टैंक के यूरोप निदेशक एमरे पेकर कहते हैं कि तुर्की के पास परियोजना के पूरी तरह से साकार करने के लिए वित्त की कमी है। ऐसा लगता है कि वह प्रस्तावित बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए यूएई और कतर के समर्थन पर भरोसा कर रहा है। ऐसा होने के लिए खाड़ी देशों को निवेश पर अच्छे रिटर्न के बारे में भरोसा देने की जरूरत होगी।
आईएसआईएस का गढ़ रहा है बसरा
पेकर के मुताबिक सुरक्षा और स्थिरता से जुड़े मुद्दे भी हैं जो निर्माण और परियोजना की लंबी व्यवहार्यता दोनों को खतरे में डालते हैं। इराक बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार, खस्ताहाल बुनियादी ढांचे, कमजोर सरकार और नियमित राजनीतिक अस्थिरता से परेशान है। यह भी साफ नहीं है कि इराक इस परियोजना को कैसे वित्त पोषित करेगा। इराक मध्य पूर्व का वह हिस्सा है, जो अक्सर हिंसा और अस्थिरता से घिरा रहता है। जिस बसरा में इस प्रोजेक्ट का सपना देखा जाता है वह कभी आईएसआईएस का गढ़ था। यहां के युवाओं पर अभी तक आईएसआईएस का प्रभाव देखा जा सकता है। ऐसे में एर्दोगन जिस प्रोजेक्ट के बारे में सोच रहे हैं, उसका भविष्य भी खतरनाक हो सकता है।

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author

Jyoti Bala

By News Thikhana

Senior Sub Editor

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