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वसुधैव कुटुम्बकम्: जी हाँ, विश्व के हम सब प्राणी धरती माता की सहोदर सन्तानें हैं

रिपोर्ताज

वसुधैव कुटुम्बकम्: जी हाँ, विश्व के हम सब प्राणी धरती माता की सहोदर सन्तानें हैं

रिपोर्ताज//Madhya Pradesh/Indore :

गुजरात के गांधीनगर में पारंपरिक चिकित्सा पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की पहली शीर्ष बैठक 17-18 अगस्त 2023 को आयोजित हुई।  इस अंतरराष्ट्रीय शिखर सम्मेलन में  स्थापित लेखक और चिकित्सक डॉ. मनोहर भंडारी ने विशेष रूप से भाग लिया। प्रस्तुत है उन्हीं की कलम से इस सम्मेलन का रिपोर्ताज...

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सबके लिए स्वास्थ्य और कल्याण [हेल्थ फॉर आल एण्ड वेल बीइंग] की दृष्टि से आहूत पारम्परिक और पूरक चिकित्सा पर केन्द्रित प्रथम वैश्विक शिखर सम्मलेन में 90 देशों के लगभग दो सौ प्रतिभागियों ने सहभागिता की I इस सम्मलेन में विश्वभर के पारम्परिक तथा पूरक चिकित्सा से जुड़े उपचारकों, वैज्ञानिकों, समुदायों, राष्ट्रीय नीति निर्धारकों, अन्तरराष्ट्रीय संगठनों, विशेषज्ञों, शिक्षाविदों, हितग्राहियों ने एक सक्षम-समर्थ मंच पर विचार-विमर्श किया है I स्वास्थ्य और सतत विकास में विभिन्न देशों में प्रचलित पारम्परिक एवं पूरक चिकित्साओं के योगदान पर सर्वोत्तम प्रथाओं [बेस्ट प्रैक्टिसेज], गेम चेंजिंग साक्ष्यों, डाटा, शिक्षण के स्वरूप, शोध, तकनीकों और नवाचारों को साझा किया गया I एक विराट और विहंगम दृष्टि के साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन के अन्तर्गत उसके क्षेत्रीय कार्यालयों द्वारा तैयार तकनीकी दृष्टि से उन्नत [एडवांस] प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया, जिसकी खूब सराहना हुई है I सदियों से पारम्परिक और पूरक चिकित्साएं परिवारों और समुदायों में प्रभावी उपचार की दृष्टि से एक अभिन्न तथा अनिवार्य स्वास्थ्यदायी संसाधन के रूप में प्रचलित और प्रतिष्ठित रही हैं I वर्तमान में लगभग 40% फार्मास्यूटिकल उत्पादों का आधार प्राकृतिक उत्पाद ही हैं I पारम्परिक तथा पूरक चिकित्सा के शोध हेतु जीनोमिक्स और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के उपयोग को प्राथमिकता दी जा रही है I हर्बल दवाओं, प्राकृतिक तथा जैविक उत्पादों के प्रति वैश्विक स्तर पर नागरिकों की रुचि के कारण उद्योग बढ़ रहे हैं I

इस सम्मलेन में सामूहिक सत्रों और समानान्तर सत्रों में लगभग चार दर्जन प्रत्यक्ष और परोक्ष वक्ताओं ने अपने विचार प्रस्तुत किए और लगभग इतने ही श्रोताओं ने अपनी जिज्ञासा के बहाने सबके कल्याण से परिपूर्ण अपने ह्रदय की भावनाओं को प्रकट करने का भरसक प्रयास किया, कुछ श्रोताओं ने तो सत्रीय समयसीमा समाप्त होने पर भी संचालन कर रहे महानुभाव से अनुमति लेकर अपने विचार व्यक्त किए I

सभी वक्ताओं ने पारम्परिक और पूरक चिकित्सा की महत्ता तथा पुनर्प्रतिष्ठा को अपने-अपने अकाट्य तार्किक वक्तव्यों से समय की आवश्यकता निरूपित किया I उनके वक्तव्यों से एक बात जो सीधे-सीधे उनके हृदयों और अन्तरात्मा से निकल कर सभी श्रोताओं के हृदयों में सहजता से प्रवेश कर आत्मीयता और पारिवारिकता की प्रचण्ड लहरों को जन्म दे रही थी, वह थी रोगग्रस्त मानवता की रोगमुक्ति के बहाने वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना को साकार करने की आवश्यकता I वक्ता के रूप में मंच पर विराजमान तथा अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रही बोलिविया से आई एक भगिनी, पूरे समय अपने हाथों में सभी देशों के ध्वजों का प्रतीकात्मक रूप में तैयार एकीकृत ध्वज हाथों में धारण किए हुए थी, जब उन्होंने अपने वक्तव्य के लिए माइक थामा और भावातिरेक स्वरों में अपने संक्षिप्त उद्बोधन में मदर अर्थ, मदर अर्थ [धरती माता-धरती माता] का बारम्बार उल्लेख किया और कहा कि हम सभी मदर अर्थ से सम्बद्ध हैं, उन्हीं की संतानें हैं तथा हम सब एक हैं I उनके इस वक्तव्य से सभी प्रतिभागियों को ऐसा लग रहा था कि समूचे विश्व के नागरिक भौगोलिक तथा सांस्कृतिक पृथकता और विविधता के उपरान्त भी एक ही परिवार के सदस्य हैं I उनके वक्तव्य के उपरान्त तालियों की समवेत जोरदार गड़गड़ाहट से यह स्पष्ट ध्वनित हो रहा था कि कम से कम इन 90 देशों के प्रतिनिधियों के भीतर पारिवारिकता अर्थात् वसुधैव कुटुम्बकम् का भाव-समुद्र उफान पर है I उस सत्र की समाप्ति के उपरान्त जलपान के अवकाश में दर्जनों भारतीयों और विदेशी श्रोताओं ने उनकी सराहना करते हुए उनके साथ फोटो खिंचवाएं, उन क्षणिक दृश्यों में धरती माता की विराट छवि बार-बार प्रकट और अदृश्य होकर मानो कह रही थी कि मेरी प्रिय सन्तानो ! अब समय आ गया है कि सभी अहंकारों, मतभेदों, मनभेदों और भौगोलिक सीमाओं को भूल कर एक वृहद् संयुक्त परिवार की मेरी इच्छा को साकार करो I

ऐसा प्रतीत हो रहा था, जैसे सभी देशों के नागरिकों के हृदयों से महोपनिषद का यह श्लोक बरबस निकल कर अपनी सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय, सार्वभौमिक, सार्वजनिन, कालजयिता की गुरुता तथा महता को रेखांकित कर रहा हो, “अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम्, उदारचरितानां तु वसुधैवकुटुम्बकम्”, अर्थात् यह मेरा है और यह नहीं है, ऐसे भाव संकुचित मन वाले [कुछ] व्यक्ति करते हैं और उदार हृदय वाले [अधिसंख्य] व्यक्तियों के लिए तो सम्पूर्ण धरती ही एक परिवार है I अन्य वक्ताओं ने भी इस शिखर सम्मलेन के ध्येय वाक्य “एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य, [वन अर्थ, वन फैमिली और वन फ्यूचर]” की अवधारणा का बार-बार उल्लेख किया I स्मरण रहे 170 देशों ने पारंपरिक चिकित्सा के उपयोग पर डब्ल्यूएचओ को रिपोर्ट दी है और इसके सुरक्षित, लागत प्रभावी एवं न्यायसंगत उपयोग के लिए नीतियों, मानकों और नियंत्रण को निश्चित करने के लिए अनुरोध किया है।

इस सीमित आलेख में पारम्परिक और पूरक चिकित्सा पर केन्द्रित इस ग्लोबल समिट में सभी अति विशिष्ट विद्वान वक्ताओं के सम्पूर्ण उद्बोधनों का सार रूप प्रकट करना मेरी बौद्धिक क्षमता से परे है, परन्तु कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं का उल्लेख समीचीन होगा I

  • पारम्परिक चिकित्सा उतनी ही पुरानी है, जितना मानवजाति का अवतरण है I
  • पारम्परिक चिकित्सा हमारे पूर्वजों के पारमार्थिक विचारों तथा गहन संवेदनाओं से उत्पन्न अमूल्य धरोहर और कल्याणकारी उपहार है, यह पुरातन बौद्धिकता [एनशियेंट विजडम] है I वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इससे युवा पीढ़ी अनायास ही वंचित हो रही है I यदि इसे आधुनिक तकनीकी का उपयोग कर वैज्ञानिक रूप से प्रामाणिकता प्रदान कर आने वाली पीढ़ियों को नहीं सौंपा गया तो हमारी भावी पीढियां हमें कभी क्षमा नहीं करेगी, वास्तव में हम अनजाने में एक गम्भीर और अक्षम्य अपराध के दोषी हो चुके हैं I
  • विगत कुछ दशकों में हमने अपनी सभी प्रकार की पारम्परिक धरोहरों और मूल्यों की बहुत उपेक्षा की है तथा अपनी जड़ों से दूर हो गए हैं, परिणामस्वरूप सबके लिए स्वास्थ्य का लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सका है I
  • कोरोना काल में पारम्परिक और पूरक चिकित्साओं की प्रभावशीलता, उपयोगिता, सुलभता, गुरुता और महत्ता को विश्व ने स्पष्ट रूप से अनुभव किया है I भारत में श्रुति-स्मृति की परम्परा से दादी-नानी द्वारा हस्तान्तरित काढ़े ने कोरोना को परास्त करने के लिए घर-घर में मोर्चा सम्भाल रखा था I ऐसे काढों अथवा पेयों में सम्मिलित मसालों और औषधियों में डिक्न्जेस्टेंट, एन्टीइन्फ्लेमेटरी, एन्टीवायरल, एन्टीफंगल, एन्टीबैक्टीरियल, एन्टीऑक्सीडेंट, इम्यूनोमाड्यूलेटर, एन्टीकैंसर आदि गुण होते हैं I सभी देशों में प्रचलित घरेलू नुस्खों में भी ऐसे ही उपचारक गुण होंगे ही, इसी सिद्धान्त के तहत पारम्परिक चिकित्सा पर शोध की दिशा में अग्रसर होना होगा I  
  • कोरोना काल में योग, प्राणायाम और ध्यान की महत्ता को भी वैश्विक स्तर पर स्वीकार और अंगीकार किया गया है और योग की प्रभावशीलता के चलते महर्षि पतंजलि के योग दर्शन ने भारतीय सीमाओं को लांघकर वैश्विक रूप धारण कर लिया है I
  • कोरोना ने हमें एकजुट होकर काम करने के लिए विवश भी किया है और यह स्पष्ट सन्देश भी दिया है कि यदि हमने इस एकीकरण का विरोध किया तो राष्ट्रों की सीमाओं से परे समूची मानवता ही विनाश को प्राप्त हो सकती है I भारत ने कोरोना की विभीषिका में सबकी सहायता का बीड़ा उठाकर सर्वे भवन्तु सुखिनः की भावना को प्रमाणित किया है I
  • हमने प्रकृति के साथ सहजीवन के स्थान पर उसका अंधाधुंध दोहन कर उसको विनाश की कगार पर पहुंचा दिया है तथा उसके दुष्परिणाम पूरा विश्व ग्लोबल वार्मिंग के साथ-साथ विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं के रूप में भोगने के लिए विवश हो चुका है I इन आपदाओं को नियन्त्रित करना हमारे वश में नहीं है I हमें प्रकृति के साथ सहजीवन की अवधारणा को कठोरतापूर्वक अपनाना होगा I प्रकृति के साथ समन्वयन और सहजीवन के त्याग का परिणाम है कि मौसम में अनपेक्षित बदलाव हुए हैं और हमें रोगकारी रासायनिक खादों और घातक कीटनाशकों युक्त खाद्यों का सेवन करना पड़ रहा है I हम किस तरह के ग्रह पर रहना चाहते हैं, यह हमें ही तय करना होगा I स्वास्थ्य और पर्यावरण के गहन अन्तर्सम्बन्धों की महत्ता तथा गुरुता को समझना होगा I  
  • एक वक्ता ने सुस्पष्ट रूप से कहा कि जैसे-जैसे पश्चिमी चीजें हावी हो रही हैं, वैसे-वैसे हम अपनी सांस्कृतिक धरोहरों, पारम्परिक और पूरक चिकित्साओं से दूर होते गए हैं I हमें हर स्थिति में स्वदेशी परिपाटियों को अपनाना होगा I
  • सुस्वास्थ्य हरेक व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है और उस अधिकार को पाने के मार्ग को सुगम, वहनीय और सुलभ बनाना हम सभी का नैतिक दायित्व है I हम किसी भी व्यक्ति को सुस्वास्थ्य से किन्हीं भी परिस्थितियों में वंचित देखना नहीं चाहते है, इसलिए वहनीय, सर्वसुलभ पारम्परिक तथा पूरक चिकित्साओं की पुनर्स्थापना आवश्यक और अपरिहार्य है I 
  • पारम्परिक तथा पूरक चिकित्साएं सार्थक हैं और इनकी अपनी स्वतन्त्र सत्ता एवं अस्तित्व है, इन्हें वैकल्पिक कहना अनुचित है I

  • पारम्परिक चिकित्सा सर्वसुलभ है, आर्थिक दृष्टि से वहनीय [कास्ट इफेक्टिव], व्यावहारिक, प्रभावी, उपयोगी, लगभग अव्यावसायिक हैं और निरापद तथा कालजयी [सस्टेनेबल] भी हैं I
  • यह स्पष्ट रूप से और एकाधिक बार कहा गया कि वर्तमान में असंक्रामक [नॉन कम्यूनिकेबल] रोगों, मानसिक तथा मनोदैहिक रोगों के महाविस्फोट को देखते हुए पारम्परिक और पूरक चिकित्साओं को आधुनिक तकनीकों के माध्यम से शोध द्वारा साक्ष्य आधारित सिद्ध कर उनकी पुनर्प्रतिष्ठा और पुनर्स्थापना के लिए सभी देशों को साथ-साथ मिलकर चलने का समय है I
  • अनेक वक्ताओं ने सुस्पष्ट रूप से कहा कि भारतीय नेतृत्व द्वारा की जा रही इस अनूठी पहल का हम स्वागत करते हैं और सभी को उत्प्रेरित करने के लिए भारत और भारत के वर्तमान नेतृत्व का आभार मानते हैं I
  • पारम्परिक और पूरक चिकित्सा न केवल एक समय सिद्ध [टाइम टेस्टेड] विज्ञान है अपितु यह कला, दर्शन और संस्कृति का अनुपम संगम भी है I  
  • विभिन्न देशों की पारम्परिक चिकित्साओं के परस्पर विनिमय से केवल ज्ञान और कौशल्य [स्किल्स] का ही नहीं अपितु उनमें गहनता से जुड़ी देशज संस्कृतियों का भी परस्पर विनिमय तथा मिलन होगा, जो पारम्परिक और पूरक चिकित्साओं में सहज रूप से समाहित होती ही हैं I
  • आयुष के तहत आयुर्वेद, योग, एक्यूप्रेशर, एक्यूपंचर, होम्योपैथी, सिद्ध, प्राकृतिक चिकित्सा आदि सभी उपचार पद्धतियों पर भी चर्चा हुई I पंचकर्म, आश्वासन चिकित्सा, स्पर्श चिकित्सा, सकारात्मक सोच से उपचार, उपवास चिकित्सा, प्रार्थना, आस्था और विश्वास से चिकित्सा, अग्निहोत्र का भी उल्लेख हुआ I  
  • इस शिखर सम्मलेन के माध्यम से सभी देश मिलकर अपनी-अपनी पारम्परिक तथा पूरक चिकित्साओं को समाप्त होने से बचाने के साथ-साथ उनकी पुन: प्राणप्रतिष्ठा सुनिश्चित कर सकेंगे I यह एक अद्वितीय अवसर [यूनिक अपार्चुनिटी] है, जिसके माध्यम से हम पारस्परिक सहयोग से पारम्परिक चिकित्सा की सम्भावनाओं और क्षमताओं [पोटेंशियल] को सिद्ध कर सकेंगे I  
  • यह स्वीकारते हुए कि भारत की संस्कृति में सर्वे भवन्तु सुखिनः की वह दिव्य भावना स्वाभाविक रूप से बहुलता में व्याप्त है I और यही भावना विश्व के सभी देशों में भी न्यूनाधिक रूप से विद्यमान है I सभी वक्ताओं और प्रतिभागियों की उत्कट इच्छा यही थी कि सभी देश मिलकर संवेदनाओं का एक अतिभव्य देदीप्यमान प्रकाशस्तम्भ का निर्माण करें, जो समूची मानवता को सुस्वास्थ्य और कल्याण के अनुपम प्रकाश से आलोकित करने में सक्षम हो I इस दृष्टि से सम्मलेन में पधारें सभी विशेषज्ञों की आतुरता, आकुलता और व्याकुलता को अनुभव किया जा सकता था I
  • हमें उपचार आधारित चिकित्सा के स्थान पर बचाव केन्द्रित प्रणाली पर काम करना होगा I
  • आस्ट्रेलिया के एक विशेषज्ञ ने पतंजलि योग सूत्र के इस श्लोक “हेयं दुःखमनागतम्”, [अर्थात् जो दुःख अभी तक आया नहीं है, वह त्यागने योग्य है I] का उल्लेख करते हुए कहा कि हमें आने वाले दुखों [रोगों] का पूर्वानुमान कर ठोस, सटीक और परिणाममूलक रणनीतियों का निर्धारण करना चाहिए I  
  • वृद्धों की बढती हुई स्वास्थ्य समस्याओं का भी ध्यान रखने की बात कही गई I
  • एक विदेशी विद्वान वक्ता ने आयुर्वेदिक दिनचर्या की वैज्ञानिकता को स्वीकारते हुए कहा कि यदि हमने अपनी दिनचर्या और जीवनशैली नहीं बदली तो नागरिकों के उपचार की व्यवस्था में ही विश्व के अनेक देशों की अर्थ व्यवस्थाएं दिवालिया हो जाएंगी I उन्होंने जोर देकर कहा कि स्कूलों और कॉलेजों के पाठ्यक्रम में जीवनशैली को जोड़ना होगा I
  • हिंसा, बगावत तथा हानिकारक सामाजिक वातावरण पर रोक तथा वर्गीकृत मानसिक रोगों के अतिरिक्त हो रहे मानसिक रोगों पर भी संज्ञान लेने पर जोर दिया गया है I क्योंकि वर्तमान प्रणालियाँ इस दृष्टि से अक्षम सिद्ध हो रही हैं I
  • वर्तमान सामाजिक वातावरण के परिप्रेक्ष्य में एक विशेषज्ञ ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण सत्य है कि अमेरिका की साठ प्रतिशत युवतियों ने आत्महत्या का प्रयास किया, यह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि हमारी युवा पीढ़ी कितने गम्भीर तनावों से गुजर रही है, इसलिए हमें पूरी प्रणालियों को नूतन स्वरूप [रिडिजाइन] देना होगा I हम तकनीकी रूप से कितने ही आगे बढ़ जाएं परन्तु हमें अपनी पारम्परिक बौद्धिकता को विलुप्त होने से बचाना होगा I
  • गांधीनगर, गुजरात में आहूत इस वैश्विक शिखर सम्मलेन से यह तथ्य निकलकर आया कि पारम्परिक और पूरक चिकित्सा तथा आधुनिक चिकित्सा को साथ-साथ मिलकर, सभी अहंकारों और भेदों को सर्वजन सुखाय, सर्वजन हिताय की दृष्टि से त्यागकर, एक कल्याणकारी, सौहार्दपूर्ण, समन्वय का सृजन करना होगा तभी विश्व के सभी नागरिकों के सुस्वास्थ्य की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होगा और कल्याण का सपना साकार हो सकेगा I
  • इस शिखर सम्मलेन को परिभाषित करने में “भाव प्रकाश” का यह श्लोक पूरी तरह सक्षम है “यस्य देशस्य योजन्तुस्तज्म् तस्यौषधम् हितम् अर्थात् हम जिस माटी में पैदा हुए हैं, उस माटी में उत्पन्न औषधियां हमें स्वस्थ रखने में सक्षम होती हैं l इसका भावार्थ यह है कि सामान्य रूप से होने वाली व्याधियों के उपचार में प्रयुक्त औषधियां घरों और आसपास ही सहजता से उपलब्ध हो जाती हैं और उनके पार्श्व दुष्प्रभाव नगण्य होते हैं और निष्प्रभाविता तथा रेजिस्टेंस का तो प्रश्न ही नहीं रहा है I इस श्लोक का दूसरा भावार्थ है कि हमारी सामाजिक परम्पराएं और स्वास्थ्य परम्पराएं हमें स्वस्थ रखने में पूर्णरूपेण सक्षम हैं I तीसरा भावार्थ अभूतपूर्व है चूँकि मनोदैहिक रोगों की उत्पत्ति मन से होती है, जैसे कि मधुमेह, हृदयरोग, उच्च रक्तचाप, आर्थराइटिस, पेप्टिक अल्सर, अनिद्रा, अवसाद [डिप्रेशन], चिन्ता [एंग्जायटी], कैंसर आदि I जिन मन: स्थितियों के कारण ये मनोदैहिक रोग उत्पन्न होते हैं, उसी मन में यदि सकारात्मक विचारों का रोपण किया जाए तो वे अत्यन्त प्रभावी औषधि का काम कर रोगी को रोग मुक्त करने लगते हैं I वेदवर्णित आश्वासन चिकित्सा, आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की न्यूरोप्लास्टिसिटी, सकारात्मक सोच की चिकित्सा, लॉ ऑफ अट्रेक्शन आदि का आधार भी यही है I सेल्युलर बायोलॉजिस्ट डॉ. ब्रूस लिप्टन ने इसी सिद्धांत के आधार पर बीस वर्षों तक अपने रोगियों को कूटभेषज [प्लेसेबो, ऐसे पदार्थ, जिनमें किसी प्रकार के औषधीय गुण न हो] देकर सफलतापूर्वक स्वस्थ किया I

अस्तु, श्रुति और स्मृति के आधार पर सदियों से हस्तान्तरित हो रही विभिन्न देशों की पारम्परिक और पारम्परिक चिकित्साएं, जो समय-सिद्ध और अनुभव सिद्ध [एक्सपीरियंस बेस्ड] हैं, उन्हें आधुनिक वैज्ञानिक सन्दर्भों, नवाचारों और मापदण्डों के आधार पर साक्ष्य सिद्ध [एविडेंस बेस्ड] चिकित्सा के रूप में स्थापित करना आवश्यक है ताकि आने वाली पीढियां बिना किसी संकोच के इन प्रभावी चिकित्साओं को अपने वंशजों को अमूल्य धरोहरों को पूर्ण विश्वास के साथ अनन्त काल तक सौंपते रहने की अक्षुण्ण परम्परा की पुनर्स्थापना कर सकें I आधुनिक चिकित्सा विज्ञानी भी इनकी महत्ता को आत्मसात कर सकें I भूटान के मंत्रीजी का कहना था कि हम एक ही छत के नीचे आधुनिक चिकित्सकों और पारम्परिक चिकित्सकों की व्यवस्था करेंगे और रोगियों की इच्छा पर होगा कि वे किस पद्धति से उपचार करवाना चाहते हैं।

 

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डॉ मनोहर भंडारी

By News Thikhana

डॉ. मनोहर भंडारी ने शासकीय मेडिकल कॉलेज, इन्दौर में लंबे समय तक अध्यापन कार्य किया है। वे चिकित्सा के अलावा भी विभिन्न विषयों पर निरंतर लिखते रहते है।

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