राजनीति//Delhi/New Delhi :
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मंगलवार को लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण दिलाने वाला विधेयक पेश कर दिया। महिला आरक्षण बिल पर 20 सितंबर, 2023 को लोकसभा में चर्चा होगी। जानते हैं कि ये विधेयक कब से लागू किया जा सकेगा?
केंद्र सरकार की ओर से 19 सितंबर, 2023 को नए संसद भवन में पहला विधेयक महिला आरक्षण बिल पेश कर दिया गया है। संसद के निचले सदन में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने महिलाओं को लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में 33 फीसदी आरक्षण दिलाने वाला ये बिल पेश किया। इस बिल पर आज यानी 20 सितंबर, 2023 को लोकसभा में चर्चा होगी। सरकार का दावा है कि विधेयक पर चर्चा के बाद आज ही इसे पारित भी करा लिया जाएगा। अब सवाल ये उठता है कि अगर सरकार की योजना के मुताबिक ये बिल आज लोकसभा से पारित हो जाता है तो क्या 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों में 181 संसदीय क्षेत्र महिला प्रत्याशियों के लिए आरक्षित कर दिए जाएंगे?
1996 में पहली बार संसद में पेश किया गया
महिला आरक्षण विधेयक को केंद्रीय कैबिनेट ने सोमवार को ही मंजूरी दे दी थी। लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने वाला महिला आरक्षण विधेयक साल 1996 में पहली बार संसद में पेश किया गया था। इसके बाद इसे साल 1998 और 1999 में भी पेश किया गया, लेकिन बात नहीं बन पाई। फिर 2008 में भी महिला आरक्षण विधेयक पेश किया गया। इस बार भी बिल पारित नहीं हो पाया। फिर 2010 में राज्यसभा ने 108वें संशोधन विधेयक के तौर पर इसे पास कर दिया। हालांकि, उस समय कुछ सांसदों के विरोध के चलते ये बिल लोकसभा में पारित नहीं हो पाया था।
क्या है महिला आरक्षण विधेयक?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुराने संसद भवन में अपने अंतिम भाषण में कहा था कि संसद के दोनों सदनों में अब तक 7,500 से ज्यादा जन प्रतिनिधियों ने अपनी सेवाएं दी हैं। लेकिन, इनमें महिला प्रतिनिधियों की संख्या महज 600 रही है। महिलाओं के योगदान ने हमेशा से सदन की गरिमा बढ़ाने में मदद की है। तभी कयास लगाए जाने लगे थे कि मोदी सरकार संसद में महिलाओं को 33 फीसदी हिस्सेदारी दिलाने वाला महिला आरक्षण विधेयक जल्द पेश कर सकती है। बता दें कि पहली बार 12 सितंबर, 1996 को तत्कालीन पीएम एचडी देवगौड़ा की सरकार ने 81वें संविधान संशोधन विधेयक के तौर पर ये बिल संसद में पेश किया था। हालांकि, तब विधेयक पारित नहीं हो पाया।
क्या था इस विधेयक में प्रस्ताव?
महिला आरक्षण विधेयक में संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण का प्रस्ताव रखा गया था। बिल में प्रस्ताव रखा गया था कि हर लोकसभा चुनाव के बाद आरक्षित सीटों को रोटेट किया जाना चाहिए। आरक्षित सीटें राज्य या केंद्रशासित प्रदेशों के अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों में रोटेशन के जरिये आवंटित की जा सकती हैं। मौजूदा समय में पंचायतों और नगर पालिकाओं में 15 लाख से ज्यादा चुनी हुई महिला प्रतिनिधि हैं, जो 40 फीसदी के आसपास होता है। वहीं, लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं की उपस्थिति काफी कम है।
कानून बनने पर कब होगा लागू?
महिला आरक्षण विधेयक अगर 20 सितंबर, 2023 को लोकसभा में पारित हो जाता है तो भी इसे लोकसभा चुनाव 2024 में लागू करना मुश्किल है। संसद से पारित होने के बाद महिला आरक्षण बिल को कम से कम 50 फीसदी विधानसभाओं से पारित कराना होगा। वहीं, 2026 के बाद परिसीमन का काम भी होना है। कानून बनने पर भी महिला आरक्षण विधेयक परिसीमन के बाद ही लागू किया जा सकेगा। ऐसे में महिला आरक्षण लोकसभा चुनाव 2029 में लागू हो सकता है। अब सवाल ये उठता है कि कानून बनने के बाद 33 फीसदी महिला आरक्षण कब तक लागू रहेगा? बता दें कि राज्यसभा और विधान परिषदों में महिला आरक्षण लागू नहीं होगा।
कितने समय तक मिलेगा आरक्षण?
साल 1996 में जब ये विधेयक पेश किया गया था, तो इसके प्रस्ताव में स्पष्ट तौर पर लिखा गया था कि इसे सिर्फ 15 साल के लिए ही लागू किया जाएगा। इसके बाद इसके लिए फिर से विधेयक लाकर संसद के दोनों सदनों से पारित कराना होगा। अब सवाल ये उठता है कि अगर ये विधेयक कानून बन जाता है तो इसकी 15 साल की अवधि कब से शुरू होगी? कानून विशेषज्ञों के मुताबिक, महिला आरक्षण की 15 साल की अवधि लोकसभा में इसके लागू होने के बाद से ही शुरू होगी। अगर ये 2029 में लागू हो जाता है तो ये 2044 तक लागू रहेगा। इसके बाद दोबारा विधेयक संसद में लाना होगा और पूरी प्रक्रिया से गुजरना होगा।
लागू होने पर क्या बनेंगे समीकरण?
महिला आरक्षण लागू होने के बाद लोकसभा में मौजूदा सांसदों की संख्या के आधार पर संसद के निचले सत्र में कम से कम 181 महिला एमपी तो होंगी ही। फिलहाल लोकसभा में महिला सांसदों की भागीदारी 15 फीसदी से भी कम है। इस समय लोकसभा में 78 महिला सांसद ही हैं। अगर परिसीमन के बाद संसद सीटों की संख्या बढ़ती है तो महिला सांसदों की संख्या में भी इजाफा होगा। अगर राज्यों की बात की जाए तो फिलहाल ज्यादातर विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 15 फीसदी से भी कम है। वहीं, कई राज्य विधानसभाओं में तो महिलाओं की हिस्सेदारी 10 फीसदी से भी कम है। देश के 19 राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी 10 फीसदी से कम है।
क्या अलग से मिलेगा एससी-एसटी आरक्षण?
लोकसभा में एससी और एसटी आरक्षण लागू है। लेकिन एससी-एसटी महिलाओं को अलग से आरक्षण नहीं मिलेगा। महिला प्रतिनिधियों को कोटा में कोटा मिलेगा। आसान भाषा में कहें तो लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एससी-एसटी वर्ग के लिए पहले से आरक्षित सीटों में ही महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण मिलेगा। फिलहाल लोकसभा में 47 सीटें एसटी और 84 सीटें एससी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। संसद की मौजूदा स्थिति के आधार पर कहा जा सकता है कि कानून बनने के बाद 16 सीटें एसटी और 28 सीटें एससी वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। लोकसभा में ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है। इसके अलावा महिलाएं उन सीटों पर भी चुनाव लड़ सकती हैं, जो उनके लिए आरक्षित नहीं हैं।
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