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आखिर क्यों धंस रहा जोशीमठ, ये हैं पांच असली कारण..!

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आखिर क्यों धंस रहा जोशीमठ, ये हैं पांच असली कारण..!

आपदा//Uttrakhand/Dehradun :

सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर जोशीमठ धंस क्यों रहा है? वैज्ञानिकों के अपने तर्क हैं लेकिन शोध रिपोर्ट के तथ्यों और वर्तमान में वैज्ञानिकों के नजरिए पर फोकस अलग तस्वीर दिखाता है।

बदरीनाथ, हेमकुंड साहिब का गेटवे कही जाने वाली आदि शंकराचार्य की तपस्थली जोशीमठ की भूमि लगातार धंस रही है। मकान, होटल जमींदोज होने लगे हैं। ऐतिहासिक नृसिंह मंदिर में भी दरारें आ गई हैं। अब तक 678 मकानों में दरारें आ चुकी हैं। जोशीमठ को लेकर चार प्रमुख शोध हो चुके हैं, जिनमें अलग-अलग समय पर शोधकर्ताओं ने अलग कारण बताए। 

पांच प्रमुख कारण
1- एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगाड़ परियोजना की टनल का निर्माण
2- शहर में ड्रेनेज की व्यवस्था न होना
3- पुराने भू-स्खलन क्षेत्र बसा शहर
4- क्षमता से अधिक अनियंत्रित निर्माण कार्य
5- अलकनंदा नदी में हो रहा भू-कटाव
अब तक इन कारणों को बताने वाली पांच रिपोर्ट
1- तपोवन-विष्णुगाड़ परियोजना: जुलाई 2022 को चार भू-विज्ञानियों प्रो. एसपी सती, डॉ. नवीन जुयाल, प्रो. वाईपी सुंदरियाल और डॉ. शुभ्रा शर्मा का एक शोध पत्र टूवर्ड अंदरस्टैंडिंग द कॉज ऑफ सोयल क्रीप एंड लैंड सबसाइडेंस अराउंड हिस्टोरिकल जोशीमठ टाउन जारी किया था। इसमें उन्होंने कहा था कि यहां पहाड़ी ढलानों को काटकर बहुमंजिला इमारतें खड़ी कर दी गई। तपोवन विष्णुगाड़ परियोजना की टनल जोशीमठ के नीचे करीब एक किमी गहराई में गुजर रही है। उनका कहना था कि यह सुरंग जोशीमठ व आसपास के लिए कभी भी मुश्किलें पैदा कर सकती है। वहीं, 25 मई 2010 को करेंट साइंस शोध पत्रिका में प्रकाशित गढ़वाल विवि के पूर्व प्रोफेसर एमपीएस बिष्ट व डॉ. पीयूष रौतेला के शोध पत्र में भी स्पष्ट कहा गया था कि परियोजना की टनल बोरिंग मशीन की वजह से पानी का रिसाव बढ़ रहा है जो कि भविष्य का खतरनाक संकेत है।

2- ड्रेनेज व सीवेज व्यवस्थाः पिछले साल 16 से 19 अगस्त के बीच राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अधिशासी निदेशक डॉ. पीयूष रौतेला के नेेतृत्व में एक टीम ने जोशीमठ का सर्वेक्षण किया था। शोध के बाद उन्होंने नवंबर माह में 28 पृष्ठों की रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। इसमें उन्होंने माना था कि जोशीमठ के नीचे अलकनंदा में कटाव के साथ ही सीवेज और ड्रेनेज की व्यवस्था न होने से पानी जमीन में समा रहा है। इससे जमीन धंस रही है। 

3- भूस्खलन क्षेत्र में बसा शहरः 1970 में अलकनंदा की बाढ़ के बाद यूपी सरकार ने 1976 में तत्कालीन गढ़वाल आयुक्त एमसी मिश्रा की अध्यक्षता में वैज्ञानिकों की 18 सदस्यीय कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी में सिंचाई, लोक निर्माण विभाग के इंजीनियर, रुड़की इंजीनियरिंग कालेज (अब आईआईटी) और भूर्गभ विभाग के विशेषज्ञों के साथ ही पर्यावरणविद् चंडी प्रसाद भट्ट शामिल थे। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में माना था कि जोशीमठ भू-स्खलन प्रभावित क्षेत्र है। इसके ढलानों से किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए। भूस्खलन इलाकों में पेड़ न काटे जाएं, पहाड़ी ढलानों पर पौधरोपण किया जाए। पांच किमी के दायरे में किसी प्रकार का खनन न किया जाए।

4- अनियंत्रित निर्माण कार्यों का बोझः जून 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था, जिसने अप्रैल 2014 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। रिपोर्ट में ‘मेन सेंट्रल थ्रस्ट (एमसीटी) से ऊपर के क्षेत्रों को बांध परियोजनाओं से मुक्त रखने, पहाड़ों में वन-कटान, सुरंग निर्माण आदि के मद्देनजर क्षेत्र में हाइड्रो-जियोलाजिकल प्रभावों का अध्ययन करने की सिफारिश की गई थी। डॉ. हेमंत ध्यानी के अनुसार, उस दौरान एनजीटी, हाईकोर्ट और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (एनआईडीएम) सभी ने बेतरतीब विकास गतिविधियों को ‘रेसिपी फॉर डिसास्टर’ घोषित किया था। इसके बाद वर्ष 2014 में उत्तराखंड सरकार ने अपना ‘क्लामेट चेंज एक्शन प्लान’ जारी किया। इसमे धारण क्षमता के आधार पर ही पर्यटन, तीर्थाटन की नियमावली जारी की गई।

5- अलकनंदा नदी में हो रहा भू-कटावः पिछले साल जिस विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट में यह तथ्य भी सामने आया था कि जोशीमठ शहर के नीचे अलकनंदा नदी से हो रहा कटाव भी खतरनाक साबित हो सकता है। इस वजह से भू धंसाव हो सकता है। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी की भूस्खलन वैज्ञानिक डॉ. स्वप्नामिता चौधरी भी वर्ष 2006 में अपने शोध में इस बात को स्वीकार कर चुकी हैं। 

क्या कहते हैं वैज्ञानिक
1- तपोवन विष्णुगाड़ परियोजनाः पिछले साल जुलाई में शोध करने वाले प्रो. एसपी सती का कहना है कि 24 दिसंबर 2009 में हेलंग की तरफ से लगभग तीन किमी की दूरी पर इस सुरंग में टनल बोरिंग मशीन फंस गई थी। उसके कारण सेलंग गांव से तीन किमी ऊपर पानी के भूमिगत स्रोत को उसने छेड़ दिया। इसके बाद लगभग एक माह तक वहां पानी रिसता रहा। उन्होंने आशंका जताई कि यह पानी भी जोशीमठ के धंसने की वजह हो सकता है। इसके अलावा तपोवन में पिछले साल जो त्रासदी आई थी, उसके बाद सुरंग में पानी घुस गया था। संभव है कि यह पानी अब नए स्रोत के जरिए बाहर आ रहा है।

2- ड्रेनेज व सीवेज व्यवस्थाः उत्तराखंड के सचिव आपदा प्रबंधन डॉ. रंजीत सिन्हा का कहना है कि जोशीमठ में ड्र्रेनेज व सीवेज का काम मजबूती से करने की जरूरत है। पिठले साल विशेषज्ञ समिति की जो रिपोर्ट आई थी, उसमें भी ड्रेनेज व सीवेज की आवश्यकता पर बल दिया गया था। इसके लिए सिंचाई विभाग ने प्रक्रिया शुरू की हुई है। 

3- पुराने भूस्खलन क्षेत्र में बसा शहरः उत्तराखंडआपदा प्राधिकरण के अधिशासी निदेशक डॉ. पियूष रौतेला का कहना है कि पूर्व के शोध में यह तथ्य सामने आए हैं कि यह शहर भूस्खलन वाली जगह पर बसा है। ग्लेशियर और भूस्खलन से निकलने वाले मिक्सचर पर यह शहर बसा है।

4- क्षमता से अधिक अनियंत्रित निर्माण कायर्ः जियोलॉजिक सर्वे ऑफ इंडिया(जीएसआई) के डिप्टी डायरेक्टर जनरल डॉ. प्रसून जाना का कहना है कि जोशीमठ में निर्धारित क्षमता से अधिक बहुमंजिला इारमतें बनने से अत्यधिक दबाव बना है। उनका कहना है कि आवासीय एवं व्यावसायिक भवनों के अंधाधुंध निर्माण से प्रति वर्गमीटर जमीन पर दबाव बढ़ गया है, जिससे भू धंसाव को बढ़ावा मिल रहा है।

5- अलकनंदा में भू-कटावः वाडिया इंस्टीट्यूट की वरिष्ठ भूस्खलन वैज्ञानिक डॉ. स्वप्नामिता चैधरी का कहना है कि बदरीनाथ के उच्च हिमालयी क्षेत्र से निकलने वाली अलकनंदा और धौलीगंगा के संगम स्थल विष्णुप्रयाग में दोनों नदियां लगातार टो कटिंग कर रही हैं। विष्णुप्रयाग से ही जोशीमठ शहर का ढलान शुरू होता है। नीचे हो रहे कटाव के चलते जोशीमठ क्षेत्र का पूरा दबाव नीचे की तरफ हो रहा है। इसके चलते भू-धंसाव में बढ़ोतरी हुई है।

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author

Jyoti Bala

By News Thikhana

Senior Sub Editor

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