लेख//Madhya Pradesh/Indore :
गतांक से आगे..
...फिर उसने पढ़ा कि 59% ब्रिटिश मेडिकल स्कूलों और 90% अमेरिकी मेडिकल स्कूलों के पाठ्यक्रम में में आध्यात्मिकता और स्वास्थ्य (एस/एच) पर सामग्री है I उसके अवचेतन में स्थित स्व संस्कृति अभिमान डिवाइस के ऊपर चढी मैकाले की धुल हटना आरम्भ हुई ही थी कि एक शोध का शीर्षक “नर्सेस एण्ड डॉक्टर्स रिकमण्ड मन्त्र फॉर सम कंडीशंस” और अचानक एक गहरा झटका लगा, जब उसकी दृष्टि के सामने शिवजी की प्रेरणा से स्टेफन को द्वारा रचित पुस्तक “योर हैंड्स केन हील यू” आ गई I
जिज्ञासा प्रबल होती गई, रात के बारह बज चुके थे, उसकी आँखों की नीन्द उड़ चुकी थी I इतने में फ्रेंच शल्य चिकित्सक और नोबेल विजेता डॉ. एलेक्सिस कैरेल द्वारा रचित पुस्तक मैन द अननोन दिखाई दी, जिसमें स्पष्ट लिखा था कि जब रोगियों को हमने असाध्य घोषित कर दिया तब प्रार्थना ने चमत्कार कर दिया I इसके बाद तो मानो अथर्ववेद, ऋग्वेद, आयुर्वेद, श्रीमद्भागवत, श्रीरामचरितमानस, श्रीमद्भागवतगीता, वेद-पुराण आदि के श्लोकों-चौपाइयों पर आधारित दर्जनों वैज्ञानिक अनुसंधान विक्रम की दृष्टि के सामने तीव्र गति से नाचने-मंडराने लगे I जो जागत है सो पावत है, लगे रज बदे गज आदि जैसी लोकोक्तियों पर आधारित दर्जनों शोध उनकी आँखों के सामने अनायास प्रकट हो गए I
लेख का पहला अंक यहां पढ़ें..
विक्रम जैसे-जैसे गूगल में घुसता जा रहा था, वैसे-वैसे ही उसे पता चलता जा रहा था कि उपवास चिकित्सा, मृदा चिकित्सा, संगीत चिकित्सा, सुगंध चिकित्सा, अग्निहोत्र, अभ्यंग, मन्त्र, स्पर्श, वायु चिकित्सा, प्राणायाम चिकित्सा, ध्यान चिकित्सा, संकल्प चिकित्सा, सूर्य किरण चिकित्सा, आभार चिकित्सा, प्रार्थना चिकित्सा, क्षमा चिकित्सा आदि अनेकों विषयों पर पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने अत्यन्त ही श्रद्धा और विश्वास के साथ प्रामाणिक शोध किए हैं I और तो और परहित सरिस धर्म नहीं भाई और जैनियों के अपरिग्रह अर्थात् जापानियों के मिनीमेलिज्म के विषय में भी शोध थे, जैनियों के उनोदरी तथा श्रीरामचरितमानस के मिताहार तथा ओकिनोवा के 20% पेट को खाली रखने विषयक शोध भी था, रात्रिभोजन त्याग के लाभ और आयुर्वेद की दिनचर्या के विषय में दर्जनों प्रामाणिक शोध उसे दिखाई दिए I मोह, मत्सर, लोभ, क्रोध आदि पर भी शोध देखकर विक्रम बहुत हतप्रभ था I
उसके भीतर के स्व संस्कृति अभिमान यंत्र के ऊपर चढी हुई धुल की मोटी परतें हट चुकी थी I विक्रम ने देश के मेडिकल कॉलेजों में स्नातकोत्तर विद्यार्थियों और चिकित्सा शिक्षकों द्वारा 1934 से अभी तक किए जा चुके लाखों अनुसंधानों को जल्दी-जल्दी खंगालना आरम्भ किया और कुछ ही देर में उस समझ में आ गया कि भारतीय ज्ञान परम्पराओं पर किसी भी मेडिकल कॉलेज में कोई अनुसंधान नहीं हुआ है, जबकि विदेशों में तो इन्हीं के आधार पर अनुसंधान कर वैज्ञानिकों ने अनेकों अन्तरराष्ट्रीय सम्मान अर्जित किए हैं और कुछ को तो नोबेल सम्मान तक प्राप्त हो चुका है I विक्रम ने भारत के मेडिकल कॉलेजों में प्रचलित स्नातक पाठ्यक्रम पर विश्लेषक-दृष्टि डाली तो उसे स्वयं के भारतीय होने पर ग्लानि होने लगी, क्योंकि स्नातक पाठ्यक्रम में आउट डेटेड और यूजलेस सामग्री की भरमार थी और समसामयिक पाठ्यक्रम सामग्रियों का सर्वथा अभाव था और भारतीय ज्ञान परम्पराओं का तो सर्वथा अभाव ही था I आत्म अवलोकन करने पर उसने पाया कि अत्यन्त प्रतिभाशाली विद्यार्थी भी मेडिकल कॉलेजों के वातावरण में रट्टू तोते बन जाते हैं और उनकी जिज्ञासा भी समाप्त हो जाती है, जैसे उसकी स्वयं की जिज्ञासा का अन्त हो चुका था, उसने मेलबर्न में सुश्रुतजी को शल्य चिकित्सा का पिता लिखा था तो भी उसके मन में प्रश्न ही नहीं उठा I उसे यह भी अनुभूति हुई कि पढ़ाई के दौरान उसका भारतीय परम्पराओं पर से विश्वास ही उठ गया था I उसे यह भी लगा कि ईश्वरीय आस्था और विश्वास से भरपूर देश में ही आध्यात्म और स्वास्थ्य के सम्बन्धों को चिकित्सा शिक्षा के पाठ्यक्रम से अछूता और दूर रखा गया है I वह सोचने लगा, काश ! मैंने अमेरिका के किसी मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लिया होता I
लेख का अगला अंक मंगलवार, 27 फरवरी 2024 को..
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