3rd Navratri Maa Chandraghanta
धर्म/कर्मकांड-पूजा/Rajasthan/Jaipur :
शक्ति की देवी मां दुर्गा के नौ रूपों में से एक रूप मां चंद्रघंटा का भी है, जिन्हें नवरात्रि के तीसरे दिन पूजा जाता है। आज चैत्र नवरात्र में माता चंद्रघंटा का दिन है। मान्यता के अनुसार मां चंद्रघंटा ने पृथ्वी पर धर्म की रक्षा और असुरों का संहार करने के लिए अवतार लिया था, वहीं मां दुर्गा के इस रूप की विशेष मान्यता है। चंद्रघंटा देवी अपने भक्तों को हर प्रकार के भय से मुक्त करके उन्हें साहस प्रदान करती हैं। माता की विधिवत् पूजा से जातक के जीवन से सभी दुःख दूर होते हैं, जीवन में सुख-समृद्धि और शांति का वास रहता है और संसार में यश, कीर्ति और सम्मान मिलता है।
आज है मां चंद्रघंटा के पूजन का दिन
देवी मां का यह रूप राक्षसों का वध करने के लिए जाना जाता है। आध्यात्मिक और आत्मिक शक्ति प्रदान करने वाली माता चंद्रघंटा की उत्पत्ति ही धर्म की रक्षा और संसार से अंधकार मिटाने के लिए हुई। आइये जानते हैं कि इस शारदीय नवरात्रि के महापर्व के तीसरे दिन माता के चंद्रघंटा स्वरूप की किस प्रकार पूजा करने से देवी मां का आशीर्वाद प्राप्त होता है...
नाम चंद्रघंटा कैसे पड़ा?
माना जाता है कि देवी के इस रूप की पूजा करने से मन को अलौकिक शांति प्राप्त होती है। माता के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र विराजमान है इसीलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है।
ऐसे करें देवी चंद्रघंटा की पूजा
माना जाता है कि चंद्रघंटा माता की पूजा से जातक के जीवन में सुख-समृद्धि आती है इसीलिए माता की पूजा के लिए आपको शुभ मुहूर्त का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। आज स्नानादि कर के लाल वस्त्र धारण करें। पूजा में सबसे पहले देवी को केसर और केवड़ा के जल से स्नान कराएं। माता चंद्रघंटा को सुनहरे रंग के वस्त्र पहनाकर उन्हें अच्छी तरह सजा लें। मां चंद्रघंटा को सफ़ेद कमल और पीले गुलाब की माला पहनाएं। केसर और दूध से बनी मिठाई का भोग लगाएं। इसके अलावा मां चंद्रघंटा को गुड़ व लाल सेब भी ज़रूर चढ़ाएं। ये सारी वस्तुएं माता रानी को बहुत प्रिय हैं। मां को लाल फूल, तांबे का सिक्का या तांबे की वस्तु चढ़ाएं।
माँ चंद्रघंटा का मंत्र
पूजा के दौरान इस मंत्र का जाप करें।
“या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः”
इसके बाद माता की आरती करें और आरती के समय घंटा बजाए।
मां चंद्रघंटा की कथा
एक बार जब दैत्यों का आतंक बढ़ने लगा, तब असुरों का संहार करने के लिए मां दुर्गा ने मां चंद्रघंटा का अवतार लिया। उस समय असुरों का स्वामी महिषासुर था, जिसका देवताओं के साथ भयंकर युद्ध चल रहा था। महिषासुर देव राज इंद्र का सिंहासन और स्वर्ग-लोक पर राज करना चाहता था। उसके आतंक से परेशान होकर सभी देवता इस समस्या से निकलने का समाधान जानने के लिए त्रिदेवों यानि भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समक्ष पहुचें।
देवताओं की परेशानी को सुनने के बाद त्रिदेवों को अत्यंत क्रोध आया और क्रोध के चलते उनके मुख से एक ऊर्जा निकली, जिससे एक देवी अवतरित हुईं। देवी को भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल और भगवान विष्णु ने अपना चक्र प्रदान किया। इसी प्रकार अन्य सभी देवी- देवताओं ने भी माता को अपने अस्त्र सौंप दिए। देव राज इंद्र ने भी देवी को एक घंटा दिया। सूर्य देव ने अपना तेज और तलवार दी, साथ सवारी के लिए माता को सिंह प्रदान किया।
सभी अस्त्र-शस्त्र के साथ मां चंद्रघंटा महिषासुर से युद्ध करने पहुंची। मां का रूप देखकर महिषासुर को यह आभास हो गया कि उसका काल समीप आ गया है। महिषासुर और देवी में और देवताओं व असुरों में भयंकर युद्ध शुरू हो गया। और अंत में मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का संहार कर देवताओं की रक्षा की।
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