श्रद्धांजलि//Maharashtra/Mumbai :
छत्रपपति शिवाजी महाराज की जयंती:
मराठा साम्राज्य के संस्थापक वीर हिन्दू सम्राट छत्रपति शिवाजी की जयंती आज हर साल 19 फरवरी को होती है। भारत के वीर सपूतों में से एक श्रीमंत छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को हुआ था और 3 अप्रैल 1680 को उन्होंने देह छोड़ दी थी। वे भारतीय गणराज्य के महानायक थे। उनका पूरा नाम छत्रपति शिवाजी भोंसले था। आज याद करते हैं उनके कुछ प्रसिद्ध किस्से, जिन्हे जानकर हम सब भारतीयों का मन खुद ब खुद वीर शिवाजी के लिए आदर से भर उठता है।
बचपन में ही खेल-खेल में सीखा किला जीतना
शिवाजी बचपन में अपनी उम्र के बच्चे इकट्ठे कर उनके नेता बनकर युद्ध करने और किले जीतने का खेल खेला करते थे। जब वे युवा हुए तो उनका खेल वास्तविक कर्म शत्रुओं पर आक्रमण कर उनके किले जीतना भी हो गया। शिवाजी ने पुरंदर और तोरण जैसे किलों पर अपना अधिकार जमाया, वैसे ही उनके नाम और कर्म की सारे दक्षिण में धूम मच गई, यह खबर आग की तरह आगरा और दिल्ली तक जा पहुंची। अत्याचारी किस्म के तुर्क, यवन और उनके सहायक सभी शासक उनका नाम सुनकर ही मारे डर के चिंतित होने लगे थे।
मक्कार अफजल खां को यूँ मारा :
शिवाजी के बढ़ते प्रताप से आतंकित बीजापुर के शासक आदिलशाह जब शिवाजी को बंदी न बना सके तो उन्होंने शिवाजी के पिता शाहजी को गिरफ्तार किया। पता चलने पर शिवाजी आग-बबूला हो गए। उन्होंने नीति और साहस दिखाते हुए छापामारी कर जल्द ही अपने पिता को इस कैद से आजाद कराया। तब बीजापुर के शासक ने शिवाजी को जीवित अथवा मुर्दा पकड़ लाने का आदेश देकर अपने मक्कार सेनापति अफजल खां को भेजा। उसने भाईचारे व सुलह का झूठा नाटक रचकर शिवाजी को अपनी बांहों के घेरे में लेकर मारना चाहा पर समझदार और चौकन्ने शिवाजी के हाथ में छिपे बघनखे का शिकार होकर वह स्वयं मारा गया। इससे उसकी सेना अपने सेनापति को मरा पाकर वहां से दुम दबाकर भाग गईं।
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गुरिल्ला युद्ध के आविष्कारक :
कहते हैं कि छत्रपति शिवाजी ने ही भारत में पहली बार गुरिल्ला युद्ध का आरंभ किया था। उनकी इस युद्ध नीति से प्रेरित होकर ही वियतनामियों ने अमेरिका से जंग जीत ली थी। इस युद्ध का उल्लेख उस काल में रचित 'शिव सूत्र' में मिलता है।
औरंगजेब की कैद से ऐसे मुक्त हुए शिवाजी :
अपनी सुरक्षा का पूर्ण आश्वासन प्राप्त कर छत्रपति शिवाजी आगरा के दरबार में औरंगजेब से मिलने के लिए तैयार हो गए। वह 9 मई, 1666 ई को अपने पुत्र शम्भाजी एवं 4000 मराठा सैनिकों के साथ मुगल दरबार में उपस्थित हुए, परन्तु औरंगजेब द्वारा उचित सम्मान न प्राप्त करने पर शिवाजी ने भरे हुए दरबार में औरंगजेब को 'विश्वासघाती' कहा, जिसके परिणमस्वरूप औरंगजेब ने शिवाजी एवं उनके पुत्र को 'जयपुर भवन' में कैद कर दिया। वहां से शिवाजी 13 अगस्त, 1666 ई को फलों की टोकरी में छिपकर फरार हो गए और 22 सितम्बर, 1666 ई. को रायगढ़ पहुंचे।
शासन में घरेलू झगड़ों और अपने मंत्रियों के आपसी वैमनस्य के बीच शत्रुओं से साम्राज्य की रक्षा की चिंता ने शीघ्र ही शिवाजी को बीमार कर दिया। इसी बीमारी ने उन्हें मृत्यु की स्थिति में पहुंचा दिया। वर्ष 1680 में कुछ समय बीमार रहने के बाद वीर शिवाजी की उनकी राजधानी के पहाड़ी दुर्ग राजगढ़ में 3 अप्रैल को मृत्यु हो गई।
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