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राजस्थान में अशोक गहलोत की यहां होगी असल अग्निपरीक्षा!

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राजस्थान में अशोक गहलोत की यहां होगी असल अग्निपरीक्षा!

राजनीति/कांग्रेस/Rajasthan/Jaipur :

कांग्रेस विधायक भंवरलाल शर्मा के निधन के बाद सरदार शहर में उपचुनाव होना है

राजस्थान में सरकार बनने के बाद से ही वहां सीएम अशोक गहलोत खेमे और पूर्व पीसीसी चीफ एवं पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के खेमे में लगातार खींचतान चलती रही है। दोनों खेमों के बीच लगातार शक्ति प्रदर्शन की कोशिशें और शह-मात का खेल चलता रहा है। इन सबके बीच कांग्रेस विधायक भंवरलाल शर्मा के निधन के बाद सरदार शहर में उपचुनाव होना है। अगले साल होने वाले असेंबली चुनाव से पहले इस उपचुनाव को गहलोत की अग्निपरीक्षा के तौर पर देखा जा रहा है। अगर गहलोत इस सीट को बचाने में कामयाब होते हैं तो हालिया प्रकरण में हुई उनकी किरकिरी की काफी कुछ भरपाई हो सकती है। अगर सीट कांग्रेस के हाथ से निकल गई तो यह गहलोत और कांग्रेस दोनों के लिए आगामी चुनाव की भावी दिशा में एक बड़ा संकेत और संदेश दोनों होगा।
राजस्थान में फंसी है कांग्रेस
राजस्थान में कांग्रेस के लिए चेहरा न देना एक सियासी मजबूरी भी है और इसकी वजह है, वहां के सामाजिक समीकरण। आजादी से लेकर अगर अब तक राजस्थान में हुए तमाम मुख्यमंत्रियों में से ज्यादातर ब्राह्मण, ठाकुर सहित सवर्ण तबके से रहे हैं। हालांकि जहां बरकतुल्लाह खान (मुस्लिम) और मोहललाल सुखाड़िया (जैन) समुदाय से रहे हैं। वहीं जगन्नाथ पहाड़िया दलित समुदाय से थे जबकि गहलोत खुद ओबीसी से आते हैं। अभी तक वहां गुर्जर और जाट तबके से कोई भी सीएम नहीं हुआ है। राजस्थान के लोगों की नजरों में जाट परिवार में शादी के बावजूद वसुंधरा जाट की बजाय मराठा ज्यादा हैं। यहां के लोगों के लिए जाट और गुर्जर मार्शल कौम से ज्यादा ऐसी दंबग कौम है, जिनसे यहां का अल्पख्यंसक, दलित और आदिवासी, खासकर मीना समुदाय हमेशा सशंकित और आतंकित रहा है। पायलट के नाम को आगे बढ़ाने को लेकर कांग्रेस के सामने अपने भीतरी समीकरणों से ज्यादा सामाजिक समीकरणों के चलते असमंजस रहा है। गुर्जर पायलट को आगे बढ़ाने में मीना समुदाय की नाराजगी का खतरा है।
चेहरे देने का नहीं है चलन
पिछले कुछ सालों का इतिहास देखें तो आमतौर पर कांग्रेस में चेहरा आगे कर चुनाव में जाने का चलन नहीं रहा है। कांग्रेस में ज्यादातर मौकों पर यही दलील दी जाती रही है कि सामूहिक नेतृत्व में पार्टी चुनाव में उतरेगी, जीत के बाद विधायक दल की राय के बाद सीएम तय होगा। पिछली बार भी राजस्थान में बिना चेहरे के कांग्रेस ने चुनाव लड़ा था। पिछले एक दशक में इनके अलावा कर्नाटक, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, गोवा, केरल जहां भी कांग्रेस के लिए सत्ता में आने की संभावना रही हो, सब जगह कांग्रेस हाइकमान ने सामूहिक नेतृत्व में जाने का फैसला किया।

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Jyoti Bala

By News Thikhana

Senior Sub Editor

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